Thursday, 21 June 2012

"पहाड़ माँ बलिप्रथा"

हे देवी! दैंणी ह्वै जै, ये साल मेरु नाती ह्वै जालू ता त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू,
हे देवी! दैंणी ह्वै जै, मेरु नाती थैं पांच साल कु कैर दयेई त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू.
हे देवी! दैंणी ह्वै जै, मेरु नाती थैं दस पास करे दये त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू
हे देवी! दैंणी ह्वै जै, मेरु नाती की नौकरी लगे दये त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू  
हे देवी! दैंणी ह्वै जै, मेरु नाती कु ब्यो करे दये त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू.

क्या सच मा देवी याँ से दैंणी ह्वै जान्द? 
या यांका पैथर सिर्फ हमरि पिछड़ी सोच आन्द?
आखिर एक जीव की ज्यान लेकी देवी दैंणी कनकै रान्द?
अखिर यु जीव भी ता देवी की दया से पैदा ह्वान्द।

मिथें आज का समाज मा कन्या भ्रूण की दशा,
और पहाड़ी समाज मा बुग्ठया की स्तिथि मा कुछ अंतर नि दिख्याँद,
एक पैदा हूण से पैल मार दिए जान्द,
और दुसरू थैं खिलै-पिल्लै की चट कैर दिए जान्द.

मेरु धन्यबाद च मेडिकल साइंस थैं,
की अल्ट्रा साउंड आज भी भिंडी पैसों मा ह्वान्द,
निथर बखरी कु और ब्वारी कु अल्ट्रा साउंड दगडी करये जान्द,
और ब्वारी कु कोख मा नाती पता चलण पर,
बखरी कु कोख कु नौनु देवी मा चढ़ये जान्द.

क्या आस्था का नाम पर यु कत्लेआम ठीक मन्यु चाँद?
जेथें हमरु समाज कभी अष्ठ्बली का नाम से देवी मा लिजांद,
या फिर जात, पूजै जना क्य-२ कारिज कनी रान्द?

मी हम सब्यों क सामणी एक सवाल रखणु चाँदु,
कि जब एक बेजुबान का सरीर और कंदुढ मा चौंल-पाणी डल्ये जान्द,
ता क्या झुर्झुरयाटन वेकु सरीर नि हिलण चयांद?

बस उठावा डन्ग्रू और उडै दया वेकि मूण,
वू निरीह ता चुपचाप हमरी अंधी आस्था की भेंट चढी जान्द.
और हमरा घार मा द्वी तीन दिन तक संगरांद हुईं रांद.
अरे! हमसे भलु ता वू 'क़सै' च,
जू अपणा व्यवसाय मा देवतों कु नौ त नि लांद.

उठ, जाग और बोट मुट्ट मेरा उत्तराखंड कु नयु समाज,
खा सौं की यी कुरीत पर अब रोक लगी चयांद,
निथर भोल हमरी आणवाली पुश्त भी यी नि सोच की,
कै बेजुवान, कै लाचार की ज्यान देवतों क़ नौ पर ल्येण से पुण्य आन्द।।

Copy Right @विजय गौड़ 
२१/०६/२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित 

विजय वचन: दगीड्यो या कविता मी कैथैं ठेश पौन्चाना क़ वास्ता नि लिखनु छौं, बल्कि अपणु नयु उत्तराखंड क़ जनमानस से विनती कनू छौं की हमरा समाज मा जू कुप्रथा छन, अंधविश्वास छन, वें सें भैर आण चयेनु च. या मात्र पिछड़ापन की निशानी च. क्या हम यी बात थैं सब्यु क़ सामणी गर्व से बोल सक्दन की या हमरि महान परंपरा च? अगर आप लोगु कु उत्तर 'ना' च, ता एक नयी शुरुआत खुद से कारा, वा या की मिन आज से देवी क़ थान मा 'बलि' नि दयेन. वे पैसा थैं आप एक डाली रोपी की वांकी देखभाल पर लगये सक्दां, या फिर देवी क़ नाम पर और भी बहुत कुछ करे सक्येंदा, जैसे संपूर्ण जनमानस थैं लाभ होलू और देवी प्रसन्न ह्वैकी अपणु आशीर्वाद आप और आपका परिवार थैं जरुर दयेली. 

यी कविता पैड़ी की अगर मेरा सिवा अगर एक भी मनखी देवतो क़ नाम पर जीवहत्या नि करण की सौं खान्द ता मी ये थैं अपणी सफलता सम्झुलू.

Monday, 18 June 2012

"पहाड़ों मा बणाग"

"पहाड़ों मा बणाग"


चैत निमडी ग्ये बैसाख ऐ ग्ये,
कैकु दस दून नाज ता कैकु बीस दून हवे ग्ये ,   
   
चला हल्दूखाल जौंला और "सेलेब्रेट" कैरियुंला
ठेका वलों की कन्न बार ऐ ग्ये.
'मदिन' लमिड ग्ये पदानो कुलीन,
और 'पूरण' धैयी लगान्दु रै ग्ये,
धैयी लगे की जब कुछ नि व्है ता,
झांजी थैं बीडी की याद ऐ ग्ये.
सुल्गी बीडी निम्ड़द निम्ड़द 
तैल्या पुनग्दी मा स्याँ चुट्ये दे.
झांजी ता अपणी झांझ मा ही छौ 
और गौन्वलों की सर्या करीं कमयीं फुके ग्ये.
एक चालीस रूप्या की थैली मा,
देखा कनु सर्या पहाड़ फुक्ये ग्ये .
हर मन्खी दिख्येनु लाचार,
'मदिनी-पूरण' तुमारु कनु म्वरी ग्ये,
नि  कन्न पैला तुम 'सेलेब्रेट',
लोलावो तुमुन मनख्यात फूकी दये.
ना देखि सकनो छौं ना छोपी सक्नौ छौं,
सर्या पहाड़ मा कनि बणाग लगी ग्ये...
क्वी ता आवा अग्ने और रोका स्यूं झाज्युं थैं,
जौंकी दारु मा म्येरू पहाड़ फुक्ये ग्ये,
हैरी भैरी डांडी कांठी,
देखा कनि उज्याड़ बणी गयें.
देखा कनि उज्याड़ बणी गयें.....

विजय गौड़ 
१८ जून २०१२ 
सर्वाधिकार सुरक्षित..

"नारैन"


"नारैन"


देखा नारैन कू खून आज जबरदस्ती निकल्येनु च ,
क्या कन्न कलयुग मा यन्नी ता होंद,
इतिहास मा जन कल्याण का वास्ता नारैन  कू अवतार हवे छौ,
आज नारैन कू खून कैकी अस्मिता का वास्ता गढ़ेनु च ,
आखिर कब तक छुपैलू अपना स्यों कुकर्मों की कुंडली,
अब जन मानस अपना अधिकारों थैं समझनो च,
नौनु बुन्नु तू मेरु बुब्बा छै,
और बुब्बा बौग सरनो च,
आखिर कै कै थैं जी जवाब दयोलू नारैन,
झनि कितना लम्बी लैन लगायी च,
बेशर्मी की भी एक हद होंद यनु सुणी छौ,
आज बेशरम ही नारैन बन्युं च..
आखिर कब तक शर्म शार कन्न तिन यु उत्तराखंड,
जैका भोरा तिन स्यु आलिशान जीवन बितयु च..
अगर सचु होलू भगवान् ता त्वैथैन असगार लगन ये उत्तराखंड और सभी उत्तराखंध्यु कू..
जौंकी भोली पछ्याण पर तिन प्रश्नचिन्ह लगायु च...

विजय गौड़ 
२९.०५.२०१२.
सर्वाधिकार सुरक्षित

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'5:06pm May 29
हा हा उम्दा लिखा है आप ने विजय जी
क्या करें जब नारैण ही खुद येंस्सा हो ........................कोर्ट ने तो सिर्फ और सिर्फ खून माँगा है, जनता तो उसकी हड्डी चूसने के लिए तैयार है


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु5:17pm May 29
क्या बोन्न तब...जब तक बात ढकीं..भलि...भेद खुललु त क्या होलु...सोचा


डॉ. अवनीश नौटियाल5:06pm May 29
हे राम, हे बद्रीविशाल या उत्तराखंड की पैलि घटना छ जू आज यनु ह्वै. उत्तराखंड का लोग अपणु खून राष्ट्रहित, सुरक्षा का खातिर देंदा छन. पर क्या बोन्न, बुढया तिवारी यु क्या करियाली त्वेन....

"उत्तराखंड"


"उत्तराखंड"

  



क्या कभी म्यरा भी दिन आला ??
सी दिन पैली भी गरीबी मा ही कटेनी,
और आज भी कुछ नि बद्ल्ये I
घुंडा पैली भी चिर्याँ ही रैंदा छाँ,
आज भी थ्यगली थैं लारू नि ऐ I
पैली बिराणों का बीच अपुथैं खुज्यांदु छौ,
आज अपणो  मा भी पछ्याण नि रै I
कभी क्वी इना फर्काणु कभी क्वी उना,
फ़र्क्ये की भी कुछ हथ नि ऐ I
कबी यू पी मा छऊ, फिर उत्तराँचल व्है ग्यों,
अब उत्तराखंड व्है की बी क्या व्है I
मी ता तब भी तिरस्कृत ही छौ,
अलग हवे की बी कुछ बक्की नि व्है I
फरक इथगा ऐ ग्ये की पैली बिराना लुटना छयाँ,
अब अपनों मा होड़ मची ग्ये I
मेरी  आज बी वी टक्क लगई चा ,
क्या कभी म्यरा भी दिन आला..???

विजय गौड़ 
२२.०५.२०१२