Tuesday 2 April 2013

गैल्या!!!


म्यरु जोग छै, य क्वी रोग छै, नि जंणदू मि,
पण त्वै तैं मिठु संजोग  मणदू मि।।

यूँ हथ्यों कि रिखढ़ो मा सजौणू त्वैतैं,
मि त्यरु छौं, अपणु भाग बणोणु त्वैतैं,
गाँण्यु मा बि त्वैसणी गणदू मि,
म्यरु जोग छै, य क्वी रोग छै नि जंणदू मि।।

त्येरि आंख्युं क सवाल, मि सूणू कनक्वै,
डरदु छौं अफसणि बिसरण से, बुलणु कनक्वै,
त्वैमा, तबि त अजाण बणदु मि,
म्यरु जोग छै, य क्वी रोग छै, नि जंणदू मि।।

गौं-गल्यों, खौला-मेलों मा खुज्यांदुं त्वैतैं,
अँधेरा-उज्यलों, स्वीणों-वीणों मा भट्यान्दु त्वैतैं,
त्येरि मुखुड़ी से हैंकि, क्वी मुखुड़ी नि पछयणदु मि,
म्यरु जोग छै, य क्वी रोग छै नि जंणदू मि,

तिन म्येरि हि होण, त्येरि सौं खै बतांदु त्वैतैं,
त्येरि खुद, त्यरु ख्याल, दिन-रात सतांदु मैतैं,
ब्योला बणी छौं तैयार, बस दिन-बार जग्वल्दु मि,
म्यरु जोग छै, य क्वी रोग छै नि जंणदू मि ......

विजय गौड़
०२ /०४/२०१३