Friday, 7 March 2014

मैं "न्यूज़" बनना चाहता हूँ !!

दग्ड्यौ हम लोखु न जै उद्देश्य क वास्ता य संस्था NEWS (नैनी एकता वेलफेयर सोसाइटी) सुरु करीं च वैथें एक ढवण्या भासा म लिखीँ कविता क द्वारा सब्यों तलक पौंचाणै कि कोसिस कनु छौँ, आस करदु कि जु संदेस हम सबि भै-बंद, दीदी-भुल्यों, दाना-सयणों तलक पौंचाण चंद्य़ा, वू जरुर पौंचळु अर भंडी से भंडी लोक याँ से जुड़ेला।आज क समय म ज्व भासा प्रचलित च वेकु इस्तेमाल कना कि कोसिस मिन करीं च। 

@ विजय गौड़ 


मैं "न्यूज़" बनना चाहता हूँ,
द्वी ब्येलि कु गफ्फा कमाने के बाद बचे समय को,
मैं अपने गौं-मुलुक के लिये "यूज़" करना चाहता हूँ,
मैं "न्यूज़" बनना चाहता हूँ।।

हाँ! मिथै कुच बणना खुणि अपना मुलुक छोड़ना पड़ा,
पण मुलुक तो सरैल ने हि छोड़ा,
मन तो सदनि वुखि रहता है,
भोल म्येरि औण वलि पुश्त का सरैल अर मन द्वी वुखि रहें,
मैं ऐंसी कोई राह "चूज" करना चाहता हूँ,
मैं "न्यूज़" बनना चाहता हूँ।।

मि बि वी अन्न खा रहा हूँ 
जो बड़ि-बड़ि छ्वीँ करने वाले चकड़ैत खाते हैं,
बस तनि कोरि गप्प सूणी कि मैं तुमारा हो जाऊँ,
मि यनि सोच को "रिफ्यूज"करना चाहता हूँ,
मैं "न्यूज़" बनना चाहता हूँ।।

मि जणदु छौं कि म्येरा हि जनि आप बि सोचते हैं,
त फेर यखुलि-यखुलि किलै? चला दगड़ि चलते हैं,
कनक्वै रोक पायेंगे पलायन?कनक्वै जुटायेंगे रोजगार?
मैं ये फर आपके "व्यूज" चाहता हूँ,
मैं "न्यूज़" बनना चाहता हूँ।।

copyright@ Vijay Gaur