Thursday, 6 June 2013

शालिनी , म्येरि शालिनी ....... !!!

शालिनी , ए म्येरि शालिनी,
शालिनी, हाँ म्येरि शालिनी,
खिलखिलांदी, रै हैन्सणी,
य म्येरि साम-सबेर, 
त्वै से महकणी,
शालिनी , म्येरि शालिनी ..........

त्येरि य हैन्सि देखि कि,
बिन बात मि बि हैन्सणु,
सुपन्यलि त्येरि आन्ख्यों न,
बनि बनि का सुपन्या देखणु,
छोड़ी न हैन्सणु ये,
खिलीं रै बुराँस सी,
शालिनी , म्येरि शालिनी .......

त्येरि मुखुड्यो उज्यालु देखि कि,
स्यु जून बि सरमाणु,
पैलि ब्यखुनि ऐ जांदु छौ,
अब राति बि डैर-डैरि आणू,
ये थैं यनि डराणि रै,
जु बौडु ना घाम भी,


शालिनी , म्येरि शालिनी .......

लिख्वार त्वे लेख-लेखि कि,
रसिला गीत च मिसाणु,
गितेर, त्वे देख-देखि कि, 
सिख्युं-लिख्युं, गै नि पाणु,  
तू रूप कि कुण्डी मा ऐ,
फुल्याँ फूलों कि बार सी,


शालिनी , म्येरि शालिनी .......

विजय गौड़ 
कविता संग्रह "रैबार" से 
०६।०६।२०१३

Copyright @ Vijay Gaur  06/06/2013