Tuesday 30 October 2012

"माया कु रैबार"


कै बिना रयेणु नि, गफ्फा अब खयेणु नि,
रात-दिन आंखि बिन्जी रैन्दिन,
बोला! क्या यिथैं हि 'माया' बोदिन??

रूम-झुम वूं छीटों मा, बस्ग्याल का च्वींटों मा,
दयेखी छै पैलि बार,
ऐ ग्ये छै जिकुड़ी मौल्यार,
ऐ  छै जब सामणी,झणी क्या मै ह्वै ग्येई?
स्वीणों मा त छै हि छै, म्येरा वीणा भि ल्ये ग्येई!!
रात-दिन आंखि बिन्जी रैन्दिन,
बोला! क्या यिथैं हि 'माया' बोदिन??

कनि अजाण सि बात च, जन कि दिन मा हि रात च,
अफ़ी -अफ़ी बच्यांदु छौं कै बार,
क्या यी च 'माया कु रैबार'
दयेख्दु छौं जना भि अब तू हि तू दिख्येन्दी छई,
जाण-पछ्याण चा ह्वै नि च, पर तू अपणी ह्वै ग्येई!!
रात-दिन आंखि बिन्जी रैन्दिन,
बोला! क्या यिथैं हि 'माया' बोदिन??

म्यरु ज्यु - म्यरि ज्यान,  त्वी बता! त्वे कख खुज्याँण?
खोजि मिन त्वे सब्बि गों-बज़ार,
कख करु त्वे स्ये सौं- क़रार,
त्येरी माया कु असर, इथगा मै पर ऐ ग्येई,
दुन्या-दारी सर्या बुन्नी, स्यु नौनु बौल्या ह्वै ग्येई!!

कै बिना रयेणु नि, गफ्फा अब खयेणु नि,
रात-दिन आंखि बिन्जी रैन्दिन,
बोला! क्या यिथैं हि 'माया' बोदिन??  

विजय गौड़ 
30/10/2012
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