Friday, 24 May 2013

दारु-दारू ......

दादा भि दारु, भुला बि दारु,
दारु-२ हुईं च,
गफ्फा बि दारु, झुल्ला बि दारु,
फेर मारो-२ हुईं च।।

गुरुजी नैनीडांड जयां,
क्य ठेका आज खुल्युं च?
ठेका खुल्युं हो य बंद,
वुंकू झोला म खारयुं च,
नौनु तौन्कू बुबा खुज्याणु,
झाँजी गाड़ी ऐ ग्ये क्य? 
गफ्फा बि ..............

भैजी मुंडरै दवै दियाँ?
भुला, वा त निमड़ी च,
सुरुक भितिर औ त जरा,
मिन कामै दवै खुज्ययीं च,
भयो, जैकि डिमांड आज ,
मिन बि वा हि लईं च,
दादा बि ....................

पदानों ड्यार तुम बि गयाँ,
नौनै पौणे हुईं च,
खाणे फोड़ म क्वि बि ना,
"वुख" म्वरमोर हुईं च,
कारिज तखि सुफल दिदो,
जख बल बोतल अयीं च,
दादा बि ....................

ऐंसू साल चुनौ छन हूँणा ,
क्या तिन बि कुच सुच्युं च?
दारु गेलण रस्ता लग्युं,
बुगट्या चुलुम तच्युं च,
अब त जीत म्येरि हि पक्कि,
फेर पाँच सालै कि कमैई च,
दादा बि ....................

पल्या गोँ लोग किलै छन रोणा?
बल फ़ौजी 'गब्दू' ब्वै म्वरीं च,
फौजी च त हम बि जयोंला,
वेन कैंटीन वलि धरीं च।
ठुबा बि दारु, बुबा बि दारु,
ब्वै बि दारु हुईं च,
गफ्फा बि ..............

विजय गौड़ 
२४।५।२०१३ 

तेरी तस्वीर से!!!

छुप के तेरी तस्वीर से दो बात कर लेता हूँ।
मैं यूँ ही दिन में सौ बार मर लेता हूँ।।

यूँ तो मसगूल बहुत हूँ ज़िंदगी कि जद्दोजहद में अब।
पर रस्म के लिए तुझे ज़रूर याद कर लेता हूँ।।

तेरी करीबियों के वो निशाँ मिट ते भी तो नहीं,
कोशिश करने को मैं हज़ार कर लेता हूँ,

मोहब्बत में जाँ से गुजरते हैं गुजरने वाले,
मैं कुछ देर साँस रोके खुद को मज़ार कर लेता हूँ।।

तुम तुममें खुश, मैं मुझ में खुश,
मै अब वक़्त का ऐतबार कर लेता हूँ।

ज़माने को कोसने से आख़िर होगा क्या हासिल,
इसलिये मैं ख़ुद को, गुनहगार कर लेता हूँ।। 

विजय गौड़ 
२४।५।२०१३ 

'मेरु जोग'

स्वीणों मा दयेखी छै ज्वा ब्यालि,
माया जैन्कू तैं समालि,
आज वा, बांद म्येरि ह्वै ग्येई।
म्येरा स्वीणों थैं वा वीणा कै ग्येई।।

ब्यालि तक छै ज्वा अजाण,
छ्वीं-बथ ना बुन्न-बच्याण,
होंदु छौ कुज्याँण-कुज्याँण,
बल, वींकि टिपड़ी मिस्ये ग्येई,
म्येरा स्वीणों थैं ........... 

जोग न कनि जगै य आस
होणु नी चा मै विस्वास,
रौंदु छौ जु कबि उदास,
वेकु कनु चौमास ऐ ग्येई।
म्येरा स्वीणों थैं ...........

बथौं रैबार लाणु आज,
कबि बडुलि त कबि पराज,
कंदुड्यों मा बस ई अवाज,
त्वेकू सजिलो साज ऐ ग्येई।
म्येरा स्वीणों थैं ...........

विजय गौड़ 
२४।०५।२०१३   
  

औ, सुचणि छै क्या?

भोल सम्लौन्या ह्वै जाला,
लोग छ्वीं लगाला,
माया अर मायादारों का,
गीत हि रै जाला।
औ, सुचणि छै क्या?
द्वी दिना कि हि च य ज़िन्दगी,
हम, जी ल्योंला औ, आज, अर अबि।।
भोल सम्लौन्या .............

ब्यखुनि कु घाम बुनु च,
स्वाणि रात च औणी,
हमु थैं हमरि माया को,
रैबार च दयोंणी।
औ, सुचणि छै क्या?
द्वी दिना कि हि च य ज़िन्दगी,
हम, जी ल्योंला औ, आज, अर अबि ........

भोलै कि सबेर,
झणी क्या च लौणी,
म्येरि माया कि समोंण,
बणे धैरि दये तू गौणी,
औ, सुचणि छै क्या?
द्वी दिना कि हि च य ज़िन्दगी,
हम, जी ल्योंला औ, आज, अर अबि ........

भोल सम्लौन्या ......
लोग छ्वीं ...............
माया अर ...............
गीत हि .................
औ ............... अर अबि।।

विजय गौड़
२४।०५।२०१३