Thursday, 31 January 2013

मिन उथगा हि त्वै खुदयाँण......

त्येरि मै बिसरणों बातन, बात हि रै जाण,
तू जथगा बिसरण चैली, मिन उथगा हि त्वै खुदयाँण।

क्वी सवाल कारलु कि चुप किलै छै,
तिन चुप हि राण,
शब्द खुज्यांदी रैलि,
पर गिचा बीटिंन क्वी जवाब नि आण,
तू जथगा बिसरण चैली, मिन उथगा हि त्वै खुदयाँण......

क्वी त्वै उक्सालु कि म्येरा बारा बता,
तिन टुल-टुल रव़े जाण,
यनि स्वाणी माया अपणी, 
आखिर जै कै मा कनक्वै बर्ताण,
तू जथगा बिसरण चैली, मिन उथगा हि त्वै खुदयाँण......

मिन सुणि जोडि त वु विधाता बणांद,
त मनखिन क्य कैर पाण,
तु जैखुणि बणे वेन, वुख चलि जैली,
म्येरि आश न मैम हि रै जाण,
तू जथगा बिसरण चैली, मिन उथगा हि त्वै खुदयाँण......
त्येरि मै बिसरणों बातन, बात हि रै जाण....

विजय गौड़ 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
पूर्व प्रकाशित 
    


     

सैंदाण

कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च,
मिन कै नि दिखाण, कि मिन क्य पालि धरीं च।


माया ज़िन्दगी मा पंछी बणि आंदी,
त्वै मायादार कैकि, कखि हौर उड़ी जांदी,
मैमा एक तोला नि, वून नालि धरीं च,
कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च....

म्येरु बाटू हिटणो, वा झणी कख्वै ए जांदी,
काण्डों वला बाटों बि सजीला फूल खिलै जांदी,
कबि ज्वा रै छै खुचिला, वा अब तिरालि धरीं च,
कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च......


होन्दि म्येरि अपणी त मैमा हि त रांदी,
म्येरू बणयु घोल, सिन त नि रितांदी,
मिन अपणी नवलि, कै हैंको खालि करीं च,
कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च....

विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्व प्रकाशित




या सिन्नी गवाणे, रात नी च!!!

सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च,
या सिन्नी गवाणे, रात नी च।

तू हि म्यरु ज्यू,
तु हि म्येरि ज्यान,
मिथें ज़मना कि जरुरत नी च,
त्वै दिखणु, त्वै सुचणु,
लठ्याली! म्येरि ज़िन्दगी यी च,
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

मैसणि त्येरि औंगाल हि भौत,
याँ स्ये अग्नै क्वी चाहत नि च,
एक नज़र त्येरि मुखुड़ी कि,
याँ स्ये बक्कि मै राहत नी च,
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

त्येरी मुल-मुल हैंसी भौत च मैकु,
अब दवै खाणे कि बात नी च।
त्येरा बाना हि इथगा बिमार छौं,
हौरि रोग आणे कि बात नी च
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

जब दिल स्ये दिल पैली मिल्यान,
फिर दुन्या दिखाणे बात नी च।
तु म्येरि, मि त्यरु ह्वै ग्यों आज,
या क्वी बताणे बात नी च।
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्व प्रकाशित



      

त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु!!!

त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु,
त्येरा अग्नै स्यु ज्यून बि पाणि मंगदु।

करलि आंख्युं न घैल कैर जांदी,

अर मरीजो हाल बि नि पुछणों आंदी,
आखिर मै स्ये चांदी छै त क्या चांदी,
लोलि त्येरा ख्याल से हि मै बडुली ऐ जांदी,
ब्यखुनि -फज़ल बस त्वै याद करदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।

यीं आग कु क्या, ज्वा बेर-बेर लग जांदी,

पर बुझदा-बुझदा कुज्यणि कथगा खंड खिलांदी,
जल्याँ कु दुःख जलदरा कि जिकुड़ी हि चितांदी,
जै मौलदा-मौलदा सर्या ज़िन्दगी लग जांदी,
मै त्वै हि यीं आग कु मलहम मनदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।  

ज्यू ब्वनु कि कबि तु भि मैथें चांदी,

म्येरा दगड़ी मायादार छवीं लगान्दी, 
त म्येरि ज़िन्दगी बि सब्यों बतै पांदी,
कि रोज-रोज ज्यून मै मिलणु आंदी,
यां से पोर मि कुच हौर नि सुचदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।       
त्येरा अग्नै स्यु ज्यून बि पाणि मंगदु।।।।

विजय गौड़ 

सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्व प्रकाशित