Tuesday, 30 April 2013

अब ना!!!!: "पहाड़ों मा मंदिरों, गों मा पुजै क नौ पर होन्दि बलि पर"

मुंड गिंडै कि छुचौँ, 
स्यूँकु क्य पैल्या?
प्रेम का तिसला दिब्तों कि तीस तुम,
ल्वै चारि कि कनक्वै मिटैल्या?

हुयुं मन सवल्या जैं रीत फर,
यनि, रीतै नौ कु चुसिण्या,
कब तलक चुसिल्या?
प्रेम का तिसला दिब्तों कि तीस तुम,
ल्वै चारि कि कनक्वै मिटैल्या?

चट्वरि जिभड़ि का चटगरों बाना,
दैणा हुयाँ कब तैं बुलणा रैल्या। 
मुंड गिंडै कि छुचौँ, 
स्यूँकु क्य पैल्या?

गात-कंदुड़यों चौंल-पाणि डालि की,
डंगरौं ललंगा कब तैं करणा रैल्या?
प्रेम का तिसला दिब्तों कि तीस तुम,
ल्वै चारि कि कनक्वै मिटैल्या?
ब्यटुलि, जौंल कि जात इक़्सनि,
कै तै पुट्गा इ मारा,
कै से पुट्गु भोरिल्या।
मुंड गिंडै कि छुचौँ, 
स्यूँकु क्य पैल्या?

यु बि त छन कै ब्वै क 
हि जल्म्याँ,
असगार मयेड़यों कु 
कब तैं ल्योणा रैल्या? 
मुंड गिंडै कि छुचौँ, 
स्यूँकु क्य पैल्या?

अष्टबलि, जात, पुजै बिसरि अब,
दिब्तों नौ कि डालि लगै ल्या
नौना-बालों खुणि,
कुच त जोड़ि जैल्या,
………………………। 


विजय गौड़ 
३०/०४/२०१३ 
संसोधन
३०/०८/२०१४ 
आज फेर कुच लिखणौ ज्यु बोलि, अपणु मन पसँद विषय "हमरु समाज अर रीत रिवाज" पर हि फेर कुच लिख्युं च। कोसिस सदनि रैबार दीणा कि होंद मेरि, देखा अब कथगा ये रैबार बिंग्दन। 



मौल्यार!!!!


मन मा तिन ऐकि,
यन झणी क्य बतैई,
बिरणी स्य दुन्या,
अपणि सी व्है ग्येई।।

तू बुन्नि रै,
मि त्येरा बुल्याँ तैं 
लिखणु लग्युं रौन्लू,
गीत त्येरि छुयों पर,
मिसाणु लग्युं रौन्लू,
म्यरु लिख्याँ, म्यरा गाणों मा,
त्वी हि त्वी त छैई,
मन मा तिन ऐकि .......

तू हैंसणि रै,
मि त्येरि हैंसी तैं 
सौन्ग्याणु लग्युं रौंलू,
रुन्दरों तक त्येरि हैसि 
पौंचाण लग्युं रौंलू,
तू ऐ त युं आंख्यों मा,
फेर अन्सधरि नि ऐई,
बिरणी स्य दुन्या ......

त्वी बथै दये,
क्या च मैमा,
जु, त्वे दये दयोंलु,
अनमोल त्येरि माया,
कनक्वे मि मुल्योंलू?
त्येरा औणन जिंदगी मा 
"मौल्यार" ऐ ग्येई,
मन मा तिन ऐकि .......

विजय गौड़ 
३०/०४/२०१३  
   

 
 

म्यरु मुलुक!!!


म्येरि लचारि तैं बिंगी ल्ये म्यरु मुलुक,
मन मा त्येरि खुद, आंख्युं म आँसु, टुलुक-२।

जु भग्याँन छन 
वु तखि छन रौणा,
सवादि कोदै रुटलि 
ठण्डु पाणि छन प्योंणा   
उख सबि डाल्युं छैल बैठ्याँ, 
मै यिख फुकेणु सबेर-रुमुक,
मन मा त्येरि खुद, आंख्युं म आँसु, टुलुक-२।।

दूर इथगा ऐ ग्येऊँ,
दूर अफु से हि ह्वै ग्येऊँ,
नौनु झणी क्य गिटपिटान्दु,
मि वै बिंगांदु रै ग्येऊँ,
मनसा, यु गढवली बि बुल्दु    
भिंडी नि त, एक चुलुक 
मन मा त्येरि खुद, आंख्युं म आँसु, टुलुक-२।।  

आज मिन य मुट्ट बुटीं च,
घौर आणे कि मिन सुचीं च,
अब कैकु बनवास नि होलु,
यनि म्येरि रामैण रंची च,
नौन्याल उकाल जरुर लगला,
अज्यूँ न त सुरुक- सुरुक,
मन मा त्येरि खुद, आंख्युं म आँसु टुलुक-२।।  

विजय गौड़ 
२५/०४/२०१३