Monday, 20 August 2012



चार दिन कु रैबासु!!!

चार दिन कु रैबासु रे यी दुन्या मा त्येरु,
सुद्दी नि बुन्नु, कणू नि बुन्नु, 
बस यु हि रैबार च म्येरू.....

त्वे भि दयेयी और मी भि दियुं,
वे विधाता न जलम,
द्वी घड़ी कु यु मेल चुचा,
सोच अपणा मन मा,
सोच अपणा मन मा भोल हवे जालू रे अंधेरु,
सुद्दी नि बुन्नु,  कणू नि बुन्नु 
बस यु हि रैबार च म्येरू..... 

अपणो कु अपडु त क्वी भि हवे सकदु,

मन्खी ता वी च जू,
हो बिराणो कु अपडु,
सोच अपणा मन मा, 
होलू  भोल नयु सबेरू,
सुद्दी नि बुन्नु,  कणू नि बुन्नु 
बस यु हि रैबार च म्येरू..... 

औंण जौंण कि रीत ता,
रौंण यिख सदानि,
सब्यों कु एक हि जोग लोला,
पदान   हो या पदानि,
सोच अपणा मन मा, 
भोल हवे जाला प्राण पखेरू,
चार दिन कु रैबासु रे यी दुन्या मा त्येरु,
सुद्दी नि बुन्नु, कणू नि बुन्नु, 
बस यु हि रैबार च म्येरू.....

विजय गौड़ 
नवम्बर २००८
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