जननी जब तू वीर जने,
तब ही भारत, भारत बने।
हे मातु! होती धर्म-स्थापना,
जब तू कौशल्या-देवकी बने।।
शिव की शक्ति तू ही,
नारैण की भक्ति तू ही।
तू शारदा, तू सरस्वती,
है ब्रह्म की आसक्ति तू ही।
प्रकृति बन जब तू हो प्रकट शनैः-शनैः,
तब पुनः जीव-जीवन बने।
तुझसे उदय हो धर्म का,
तू है सँहार, अधर्म का।
है तुझे वरदान जग जन्म का
तू ज्ञान प्रथम दे कर्म का।
जब सृष्टि पर कुदृष्टि के बादल घने,
तब तू पर्वत सी अटल तने
जननी जब तू वीर जने,
तब ही भारत, भारत बने।
@ विजय गौड़
जुलै, १८, २०२०
मॉडेस्टो।
तब ही भारत, भारत बने।
हे मातु! होती धर्म-स्थापना,
जब तू कौशल्या-देवकी बने।।
शिव की शक्ति तू ही,
नारैण की भक्ति तू ही।
तू शारदा, तू सरस्वती,
है ब्रह्म की आसक्ति तू ही।
प्रकृति बन जब तू हो प्रकट शनैः-शनैः,
तब पुनः जीव-जीवन बने।
तुझसे उदय हो धर्म का,
तू है सँहार, अधर्म का।
है तुझे वरदान जग जन्म का
तू ज्ञान प्रथम दे कर्म का।
जब सृष्टि पर कुदृष्टि के बादल घने,
तब तू पर्वत सी अटल तने
जननी जब तू वीर जने,
तब ही भारत, भारत बने।
@ विजय गौड़
जुलै, १८, २०२०
मॉडेस्टो।