Monday 3 December 2012

"प्रवासी"


कैथैं सुणों यीं कथा, कैमा लगौं य व्यथा,
म्येरू ज्यु ब्वनु सब्यों बताणो,
क्वी त बोला दी!!!!......बथा।

मिन बि ल्ये छौ यु जलम,
स्यीं स्वाणी धरती मा,
मिन बि बाँचि छन आखर-पहाड़ा,
वीं नीली-ख़ाकी स्कुल्या बरदी मा,
फिर बगतन छुड्ये दये मुलुक,
झणी किलै! मै नि पता!!!!
म्येरू ज्यु ब्वनु सब्यों बताणो,
क्वी त बोला दी!!!!......बथा।

मजबूरी मिथें बिरणा मुलुक लि ऐ,
न यिख, न उख, क्वी बि त अब अपणु नि रै,
म्येरा अपणा हि अब मै "प्रवासी" बुलान्दन,
बेर-बेर म्येरि मजबूरी याद दिलान्दन,
"प्रवास" कैसणी भलु लगदु?
तुमि बोला, तुमि बता??
म्येरू ज्यु ब्वनु सब्यों बताणो,
क्वी त बोला दी!!!!......बथा।

स्यु छौं आज बिना "पछ्याण" कु जीणू,
पहाड़ी ह्वैकि बि पहाड़ नि रैणु,
लाटु मन्न पहाड़ों मा हि रिन्गणु,
निर्दयी बगत मनै बात नि बिंगणु,
प्रवासी से निवासी होण कि मंसा,
पूरी होलि कि ना, नि पता,

कैथैं सुणों यीं कथा, कैमा लगौं य व्यथा,
म्येरू ज्यु ब्वनु सब्यों बताणो,
क्वी त बोला दी!!!!......बथा।

विजय गौड़ 
सर्वाधिकार सुरक्षित।
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