बाटु सुनसान भौत च,
चलणा छां, त चला,
दूर असमान भौत च,
हिट सकणा छाँ, त चला।।
मैन्गैं न मनख्यातै कमर तोड़ीं च,
उठि सकणा छाँ, त चला।
म्येरा घौर अबि पुरणि हि मोर-सिंगाड़ी च,
झुकि सकणा छाँ, त चला।।
सीदा-सच्चों तैं ज़मानु 'लाटू' बुनू च,
यिन बिंगणा छाँ, त चला।
'सप्पन' बणना कि अटगा-अटग हुईं च,
तुम बि अटगणा छां, त चला।।
सुब्न्या भैजि, अज्क्याल चैन से खाणु च,
तुम नि दुखणा, त चला।
म्यारु मुलुक अज्यूँ बि दिबतों कु आणु-जाणु च,
तुमन बि दिखणा, त चला।।
ब्वे मुरण मा बि दारु बंटेणी गौंफुंड अज्क्याल,
तुम नि बँटणा छाँ, त चला।।
दादा बि दारु, भुला बि दारु, गफ्फा बि दारु, झुल्ला बि दारु,
यु तुम नि रटणा छाँ, त चला।।
विजय गौड़
२०।०५।२०१३