Wednesday 10 April 2013

हम अपणी "दिल्ली" यिखि बणोंला!!!!

सिन घर-बार छोडि, कब तकैं जाणा रौंला।   
आवा!  हम अपणी "दिल्ली" यिखि बणोंला। 

ज्वनि मा जु गै छौं, बुड्ये बि नि बौड़ी,
पण ये पहाड़न आस अज्युं बि नि छोड़ी,
हिटा जरा उब्बु खुणी,  मुरदी सांस लौटौंला,
आवा!  हम अपणी "दिल्ली" यिखि बणोंला। 

बारह बरस ह्वै ग्येनि विकास पथ पर चलदा, 
ज्वान बुड्ये ग्येनि स्ये ताला खुल्दा-२,
अब बगत ऐ ग्ये, हरचीं तालि खुज्योंला,
आवा!  हम अपणी "दिल्ली" यिखि बणोंला। 

तुम कख-कख पौन्च्याँ, पण मि यिखि रै ग्युं,
तुमरि अपन्याँस से बि, भिंडी दूर व्है ग्युं,
अब, उत्तराखंडी होण मा अपणी सान चितौंला,
आवा!  हम अपणी "दिल्ली" यिखि बणोंला। 

हिमाल बिटी गँगा, सदानि उन्दार्यु मा जालि,
बग्याँ मैत्युं कि दार तैं उकाल लगालि,
शहरों बिटी पहाड़ों खुणि नई गँगा बगौंला,
आवा!  हम अपणी "दिल्ली" यिखि बणोंला।  

विजय गौड़ 
१०/०४/२०१३