Monday 8 July 2013

क्य यी प्रीत च?

हैंसद-हैंसद हि रोण लगि जांदु,
बैठ-बैठि हि जौंण लगि जांदु, 
स्योंण चांदु छौं, स्ये नि पांदु,
य कनि रीत च?
क्य यी प्रीत च? क्य यी प्रीत च?

क्य-क्य सुच्णु छौं मि,
मैं थैं हि नि पता,
तुम थैं पुछणु छौं मि,
क्वी त मै थैं बथा,
मन मा फूलों कि फुल्दी फुलार, 
जख दयेखा तख अयीं मौल्यार, 
य कनि रीत च?
क्य यी प्रीत च? क्य यी प्रीत च?

आज होणु च जु,
यनु त पैलि नि ह्वै,
क्वी अजाण मै से,
मै थैं लूछि ल्ये ग्ये,
वीं थैं सुच्णु, वीं थैं बंच्णु, दिन मा सौ-२ बार,
मुंड-हात कुच नि तच्णु, फेर बि मै बुखार,
य कनि रीत च?
क्य यी प्रीत च? क्य यी प्रीत च?

दिख्णु चाणु छौ कुच,
आंख्यों हौरि दिख्ये,
बिन लिख्याँ मेरो मन,
कैकु नौ ग्ये लिख्ये,
तुमखुणि बि ऐ कबि यनु रंत-रैबार,
मन मा ख्याल वींकु, आन्ख्यों मा मायादार,
य कनि रीत च?
क्य यी प्रीत च? क्य यी प्रीत च?

विजय गौड़ 
कविता संग्रह,"रैबार से" (०८।०७।२०१३)

Copyright @ Vijay Gaur 08/07/2013