Wednesday, 13 March 2013

पहाड़ी सुभौ !!!

मिथै कांडो मा हिटणु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु हि भलु लगदु। 

अब क्वी यीं गौलि काट दया त क्या कन,
मिथें जै कै थैं औंगाल घल्णु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........

जौन्थें सब्यों न धक्ये, दुन्या न पिच्गै,
वुंथै भुयां फुंडै बटवालुण हि भलु लगदु।  
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........

मिन छ्वटा-बड़ा, सब्यों कि बथ सुणिन,
मिथै अपणा मन कि सुणन हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........

ज्वी क्वी अब बडू बणन मा लग्युं,
मिथै छ्वटु बणणु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........  

अब ज़मानु मम्मी-डैडी कु ऐ ग्ये,
मिथै अज्युं बि ब्वै-बुबा बुल्णु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........  

भै-बंद अब रॉक, पॉप, गंग्नम कन्नान,
भारे! मिथै ढोल-दमों मा नचणु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु .......... 

क्वि बर्गर, क्वि चौमिन त क्वी पिज़्ज़ा बुन्नु,
मिथै गथ्वणि, फकरवणी, चुनै रूटलि फुकणु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........      

लोग अज्क्याल झणी कख-कख जाणे छ्वीं करणान,
मिथै अपणु 'पहाड़' घुमणु हि भलु लगदु,
बिरणो कि पिड़ा सुचणु ..........  

विजय गौड़ 
'मि पहाड़ी, पहाड़ म्येरि पछ्याँण'
सर्वाधिकार सुरक्षित ...