Saturday, 7 September 2013

"घंग्तोल अर दद्दि"

दगिड्यो,

आज फेसबुकै कनि बौल अयीं च, हम सब्बि जणणा छाँ, जै थैं जबि मौका लगणु, कुच्ये जाणू फेसबुक पर।  ब्यालि मिन एक अपडेट पढ़ी, कैन गौं मा डल्युं छौ कि भारै जै का गोर होला, हमरा पुंगड़ा उज्याड़ खाणा छन, जैं बि मौ क छन, लि जावा निथर हमुन गुठ्ये दीणन। द्वी-चार मिनट मा हि वेपर कथि 'लैक' बि ऐ ग्येनि, त बतावा ये फेसबुकन गोर त गोर, गुसैं बि उज्यड़ा बणै यलिंन, निथर ब्वाला दि गोर उज्याड़ खाणा न अर लोग "लैक" कन्नान, बकिबात च।  यनि फेसबुक स्ये परेसान 'दद्दि' कि छ्वीं लगाणु छौं जैंकु नौनु-ब्वारि त दूर नाति-नतिणा, यिख तक 'बाई' बि येमा हि व्यस्त छन,  'दद्दि' न "नाति"  जैकु नौ "घंग्तोल" च,  कु हात पखड़ी अर चलि ग्ये डाक्तार मा, जू अफु बि फेसबुक मा हि लग्युं छौ, त ल्यावा 'दद्दि' अर "डाक्तार" कि छ्वीं "घंग्तोल" क रोग पर जु अज्युं बि मोबैल पर हि लग्युं, बक्कि क्वी खबरसार ना .…


बिन तप्याँ हुयुं टट्गार,
मसाण लग्युं कि पित्रों असगार,
नाड़ नबज बि चलणी ठीक,
अयूँ लोलु यु कनु बुखार,
त्वै बि क्वी खबरसार,
बतौदि बेटा डाक्तार?

जांदू च त आन्दु नि,
ऐ बि त बच्यांदु नि,
कबि मोबैल, कबि कम्पुतार,
हौरि कुच खुज्यांदु नि,
कबि बैठि, कबि लम्पसार,
कनु क्य रांदु लगातार?
बतौदि बेटा डाक्तार?

रात-दिनौ सवाल इ नि,
बगतौ कुच मलाल इ नि,
कखि नौन्याल लग्याँ, कखि ब्वै- बुबा,
यूँ बूड-बुड्यों खयाल इ नि,
सेवा सौन्लि बि बल ये हि पर,
चिपग्याँ किलै सब्बि भितर-भ्यार?
बतौदि बेटा डाक्तार?

मि कुच बुन्नु, तु सुणनी नि?
 डाक्तार रोग पछ्यँणणी नि?
थाम बोड़ी तू रुकणी नि,
गौलि ब्वलि-ब्वलि बि सुखणी नि?
यु बिमारय़ों मा नै औतार,
सरय़ा दुन्या जै स्ये बिमार,
नौ च "फेसबुक्या बुखार"
सूण ब्वनु जु डाक्तार।

येकु नसा कबि रुकदु नि,
उमर कबि यु दिखदु नि,
नौना, ज्वान, बूड -बुड्या,
क्वी भेद -भौ बि करदु बि,
त सबि येका फेर तरफदार,
बिन्ग्ये क्य ब्वनु डाक्तार?

येकु खयुँ कखि ठौ नि खाँद,
वे निंद - बिज्याँ फेसबुक इ दिख्याँद,
ब्वै -बुबों पसंद चा कार नि कार,
वुख धक्याप्येलि "लैक" कनू रान्द
या त्वैकु बिमारि पण युंकु त्योवार,
बक्कि तु बोड़ी अफ़ी समजदार,
यो च "फेसबुक्या बुखार/ त्योवार"

Copy Right @विजय गौड़ "फेसबुक्या"
०६. ०९. २०१३