Saturday 25 October 2014

"म्येरि लाटी, म्येरि पाटी"

दगड़यो "पाटी" याद च? जब सबसे पैल आखर लिखणै-सिखणै की बात व्है छै घौर मा? इस्कुल्या दिनों कि ईं पैलि दगड्या थैं आज कुछ लैन समर्पित कनु छौं। अज्क्याल त स्लेट, कॉपी-पेंसिल अर कम्प्यूटर कु ज़मनु ऐ ग्ये पण मिथैन त अपणु बचपन इ सबसे भलु लगद। त ल्यावा पाटी कि खुद मा कुच आखर !


वै लाटी, म्येरि पाटी। 
झणि कख हर्चि तू?
झणि कब ह्वै छाँटि?
वै लाटी, म्येरि पाटी  …………………… 

मितै आज बि याद च,
वा इस्कूल जाणै पैलि रात,
अर वा त्यरी गोरि उजलि गात,
ज्व मिन त्वै स्ये बिन पुछ्याँ इ झ्वलण्या कै द्ये।
अर तू हँसदी-हँसदी मेरा बाना कालि ह्वै गे। 
वै पाटी! तू यनि कनि छै लाटी?

कथ्गा अलग छै तू ये जमाना का मनख्यों से,
जौंमा सफ़ेद हूणा कि होड़ लगीं च,
एक तू छै जू यूंकि सबेर खुणि,
अफु रात होंदि गै, 
पर युं से तब बि नि बिंगे 
तू रोज कलेणि रै,
पण हौरूमा त्वैन उज्यळु इ बाँटि।
म्येरि पाटी! तू यनि कनि छै लाटी?

तू, बुल्ख्या अर वा बाँसै कलम,
म्येरा बालापन क पैला दगड्या छाया,
मि त्वै छोड़ि उब उब जान्दु गौं,
पण तु कबि किलस्ये नि छै। 
तिन मी जना झणि कथगा उबुखण धंगल्येनि,
झ्वालु, तेल, कमेड़ु चाटी,
वै पाटी! तू यनि कनि छै लाटी?

आज बगत यनु बि  ऐ ग्ये कि 
अब त्वै क्वी पुछदु नि, 
अर यु नयु जमनु त्वै जणदू नि। 
पण यूँ थैं क्य पता कि,
जौं पैंसों न, आज त्येरि सौत कॉपी, कम्प्यूटर अयुं च ,
वे थैं कमाणों सगोर, यूँका बुबों तिनि सिखयूं च। 
मिखण त तु आज बि उन्नी अपड़ि छै,
जनु मेरु पाड़, पाणि, हवा, माटी,
वै लाटी तु त मेरि ब्वै सि छै लाटी, तु त मेरि ब्वै सि छै लाटी।।।।।।। 

कॉपी राइट @विजय गौड़
२५ अक्टूबर २०१४