Friday, 5 July 2013

म्येरा मुलुक !!!

हुईं रालि यनि रुमुक, यिख कब तलक?
म्येरा मुलुक कब होलि सबेर?
आलो घाम कब तलक?

करम तुमरा, अर भोगणा हम छाँ साख्यों बिटी,
पलणा हम, कमौणा तुम, बौंण-पाखों बिटी,
खाणे नाम सदनि अबेर,
बस कामि-काम कब तलक?
म्येरा मुलुक ................................................

फट्दा बादल, रड़दा डांडा, जख दयेखा तख,
पाड्यों भाग म रोणु, सुख पर दुन्या कु हक,
खल्याणों गुसैं, दांदा भैर,
हे राम कब तलक,
म्येरा मुलुक ................................................

मुलुक म्येरू, भैरा क पर् वाण जब दयेखा तब,
उज्यलु म्येरू, हौरौं न जलांण, कब छुटलू ढब,
रौल्युं-रौल्युं पाणि ठैर,
बणदा डाम कब तलक,
म्येरा मुलुक ................................................

रचना: विजय गौड़
कविता संग्रह, "रैबार" से
०५।०७।२०१३  

Copyright @ Vijay Gaur  05/07/2013