“मनोभाव”
उत्सवों के आगमन में, पितरों के इस भवन में।
हो एकत्रण हमारा, मन यही हो प्रण हमारा।।
है यही अंतःकरण में,
यही है आवरण में।
है यही गगन हमारा,
हो यहीं मिलन हमारा।
उत्सवों के आगमन में, पितरों के इस भवन में.....
स्मृतियों का आँगन,
है पवित्र, है ये पावन,
है ये आचमन हमारा,
हैं यहीं तो धन हमारा,
उत्सवों के आगमन में, पितरों के इस भवन में.....
जीवन घटे कँही भी,
पर मन रहे यहीं ही,
ये तीर्थ है हमारा,
है यही मेरा देवाला,
उत्सवों के आगमन में, पितरों के इस भवन में,
हो एकत्रण हमारा, मन यही हो प्रण हमारा।।
दीपावली २०१९ को अपने पैतृक आवास के चित्र को देख उपजे मनोभाव।
रचना: विजय गौड़
दिनांक: ऑक्टोबर २६, २०१९