Monday, 9 September 2013

भारत निर्माण !!!

ल्यावा दगिड्यो, जन कि मि ब्यालि बुनु छौ कि भोल एक चर्चरी, बर्बरी, रमरमी कविता आप लोखु थैं पढौंलू। मि अपणु बचन पुर्र्याणु छौं अर यूँ नेतों थैं कनि-कनि सुणाणु छौं। 
अज्क्याल यूँ नेतों थैं जनता खुणी कुच कनों कु बड़ु ख्याल आणों च, नया -२ बिल, आर्डिनेंस पास हूँणांन। मिथैं बि यु पर लिख्णों ज्यु ब्वैलि ग्ये, अखिर कब तलक मि अफ़ि -अफ़ि सुच्णु रांदु। 
भारे! पसंद आलो त टक लग्वै बथयाँ।

 ………………. @ विजय गौड़   

६५ सालों बिटी राज पाट तुमारो,
फेर अज्युं तलक रयाँ कन अजाण,
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??

साख्यों बिटी त लबड़खंड हि छाया,
अफ़ि धरीं छै सैरि मुल्कौ माया,
अपणा पुट्गा क्य छिकै यलिन,
जु जनता पुट्गा खुणि कानून ऐ ग्याया ?
क़ानून त जरुर लै ग्याँ तुम,
भुर्र्येलि बि थकुलि, कुज्याँण, कुज्याँण ?? 
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??

ज़मीनों क़ानून बल अब बाटु लग्युं,
जब जमीनों तुम मा तांतु लग्युं,
बेटि -जवैं खुणी ह्वै ग्ये छ्क्वै जणि,
तबि हमरा जोग कुच माटु लग्युं,
जाँद - जाँद हि निर्माणै खज्जि तुम थैं,
जणदा छाँ निथर भोल हैंकु पर्र्वाण ??
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??

वु गै छाँ 'शाइनिंग' मा,
तुम थैं लि जालु 'निर्माण',
चुनौ बाद कैन बि फेर नि दिख्याँण,
२०१३ तक तुमुन बटोलि,
२०१८ तक वोंन कमाँण,
जनता बिन्गली त ठोक-बजालि,
निथर फेर खिस्ययीं त रालि,
अर तुम बुना रैल्या,
हम नेता महान,
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??

Copyright@ विजय गौड़ 
०९। ०९। २०१३  

"लोग म्येरा गौं का"

दगिड्यो,

कुच दिन पैलि मिथैं एक बीर रस कि बड़ी भलि कविता पढ़ना कु मिलि, कवि छाया  "बल्ली सिंह चीमा" अर कविता छै:-

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के,

पूरि कविता पौढ़ी कि मिथैं बड़ु भलु लगि पण वे हि बगत मिथैं अपणा मुल्कौ (उत्तराखंड) ख्याल ऐ ग्ये, अर याद ऐ अज्क्याल कि सामजिक स्तिथि। मीं स्ये रये नि ग्ये बिन लिख्याँ अर बीर रस क जगा मा वास्तविक रस (सच्चु रस) मा लिखणै कोसिस कारि, जु बि मिन घौर फुण्ड देखि, यीँ कविता मा लिख्युं च. आप लोग प्रतिक्रिया टक्क लगै दियाँ। …………………  विजय गौड़  


राँका बालि रतब्याँण मि जाणान लोग म्यारा गौं का -२ 
खाल -धारों बस "ठेका" खुज्याणा लोग म्यारा गौं का - २ 

देखि ठेका म लग्युं तालु, हिकमत नि हरणा जमा बि -२ 
अफ़ि छंदड़ो मा, कच्ची बणै प्याणा, लोग म्यारा गौं का - २ 

ब्यो-पगिनी , बार-त्योवारों 'दारु दिब्ता' कि पुजै पैल -२ 
अब त म्वरण मा बि, 'पवा' लगाणा, लोग म्यारा गौं का - २ 

कुच कनै कि धाद द्येणु, मुलुक हैरि डांडी- कांठी - २ 
सरीं बौग, बस बुग्ठ्या -बोतल लगाणा, लोग म्यारा गौं का - २ 

स्कुल्या, मास्टर, बाबू, दफ्तर सबि मिस्याँ, यख छुटु नि क्वी - २ 
कथ्गै त रातिम बि, कुलिणौ इ राणा, लोग म्यारा गौं का - २ 

चकडैत चलणा छि चाल, बुणदन जाल हर चुनौ मा,
कच्चि - पक्किम छन बिकेणा, लोग म्यारा गौं का,
   
कब खुललि य कालि रात, कब मिट्यालु असगार यु -२ 
औ विधाता जरा त्वी बदिल द्ये, जोग म्यारा गौं का - २ 

Copyright@विजय गौड़ 
०९। ०९। २०१३