ल्यावा दगिड्यो, जन कि मि ब्यालि बुनु छौ कि भोल एक चर्चरी, बर्बरी, रमरमी कविता आप लोखु थैं पढौंलू। मि अपणु बचन पुर्र्याणु छौं अर यूँ नेतों थैं कनि-कनि सुणाणु छौं।
अज्क्याल यूँ नेतों थैं जनता खुणी कुच कनों कु बड़ु ख्याल आणों च, नया -२ बिल, आर्डिनेंस पास हूँणांन। मिथैं बि यु पर लिख्णों ज्यु ब्वैलि ग्ये, अखिर कब तलक मि अफ़ि -अफ़ि सुच्णु रांदु।
भारे! पसंद आलो त टक लग्वै बथयाँ।
………………. @ विजय गौड़
६५ सालों बिटी राज पाट तुमारो,
फेर अज्युं तलक रयाँ कन अजाण,
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??
साख्यों बिटी त लबड़खंड हि छाया,
अफ़ि धरीं छै सैरि मुल्कौ माया,
अपणा पुट्गा क्य छिकै यलिन,
जु जनता पुट्गा खुणि कानून ऐ ग्याया ?
क़ानून त जरुर लै ग्याँ तुम,
भुर्र्येलि बि थकुलि, कुज्याँण, कुज्याँण ??
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??
ज़मीनों क़ानून बल अब बाटु लग्युं,
जब जमीनों तुम मा तांतु लग्युं,
बेटि -जवैं खुणी ह्वै ग्ये छ्क्वै जणि,
तबि हमरा जोग कुच माटु लग्युं,
जाँद - जाँद हि निर्माणै खज्जि तुम थैं,
जणदा छाँ निथर भोल हैंकु पर्र्वाण ??
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??
वु गै छाँ 'शाइनिंग' मा,
तुम थैं लि जालु 'निर्माण',
चुनौ बाद कैन बि फेर नि दिख्याँण,
२०१३ तक तुमुन बटोलि,
२०१८ तक वोंन कमाँण,
जनता बिन्गली त ठोक-बजालि,
निथर फेर खिस्ययीं त रालि,
अर तुम बुना रैल्या,
हम नेता महान,
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??
Copyright@ विजय गौड़
०९। ०९। २०१३
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