Thursday, 31 January 2013

त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु!!!

त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु,
त्येरा अग्नै स्यु ज्यून बि पाणि मंगदु।

करलि आंख्युं न घैल कैर जांदी,

अर मरीजो हाल बि नि पुछणों आंदी,
आखिर मै स्ये चांदी छै त क्या चांदी,
लोलि त्येरा ख्याल से हि मै बडुली ऐ जांदी,
ब्यखुनि -फज़ल बस त्वै याद करदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।

यीं आग कु क्या, ज्वा बेर-बेर लग जांदी,

पर बुझदा-बुझदा कुज्यणि कथगा खंड खिलांदी,
जल्याँ कु दुःख जलदरा कि जिकुड़ी हि चितांदी,
जै मौलदा-मौलदा सर्या ज़िन्दगी लग जांदी,
मै त्वै हि यीं आग कु मलहम मनदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।  

ज्यू ब्वनु कि कबि तु भि मैथें चांदी,

म्येरा दगड़ी मायादार छवीं लगान्दी, 
त म्येरि ज़िन्दगी बि सब्यों बतै पांदी,
कि रोज-रोज ज्यून मै मिलणु आंदी,
यां से पोर मि कुच हौर नि सुचदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।       
त्येरा अग्नै स्यु ज्यून बि पाणि मंगदु।।।।

विजय गौड़ 

सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्व प्रकाशित 

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