Thursday, 31 January 2013

या सिन्नी गवाणे, रात नी च!!!

सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च,
या सिन्नी गवाणे, रात नी च।

तू हि म्यरु ज्यू,
तु हि म्येरि ज्यान,
मिथें ज़मना कि जरुरत नी च,
त्वै दिखणु, त्वै सुचणु,
लठ्याली! म्येरि ज़िन्दगी यी च,
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

मैसणि त्येरि औंगाल हि भौत,
याँ स्ये अग्नै क्वी चाहत नि च,
एक नज़र त्येरि मुखुड़ी कि,
याँ स्ये बक्कि मै राहत नी च,
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

त्येरी मुल-मुल हैंसी भौत च मैकु,
अब दवै खाणे कि बात नी च।
त्येरा बाना हि इथगा बिमार छौं,
हौरि रोग आणे कि बात नी च
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

जब दिल स्ये दिल पैली मिल्यान,
फिर दुन्या दिखाणे बात नी च।
तु म्येरि, मि त्यरु ह्वै ग्यों आज,
या क्वी बताणे बात नी च।
सुद्दी-सुद्दी मनाणे की बात नी च........

विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्व प्रकाशित



      

No comments:

Post a Comment