"जनन्युराज"
आवा ! भै-बन्दों तुमु थैं, तुमरी-म्येरि, हम सब्यों की "चस्गदी" कथा सुणादु.
जरा द्येखा इना-उना, अग्ने-पिछ्नै,
कखी सुणनी त नि छन वू ढडवा बिराली ,
निथर द्वि घड़ी कु सुरुक, अपणा दुलुण ही चलि जांदू .
बालापन मा रेडू बुल्दु छौ, "कैमा ना बुल्याँ भेज्यो सैन्यु कु मरयु छौं".
ज्वान हुयुं ता पता चली कि, नेगी भैजी अपू पर बितीं छौं सुणादु,
अब बिन्ग्णु छौ कि बोर्डर मा चौड़ी छत्ती करदू फौजी दिदा भि,
भौ द्येखी कि सुट पुछडि किलै लुके द्यांदु.
आज जब मी अपना मुलुक मा पुरुष की स्तिथि की समीक्षा करदू ,
त वा मिथें कमोवेश देश की सरकार जन्न ही दिख्यांद,
जख सर्या उज्याड़ ता एक जननी खाणी च,
और भुगत्नौ कु बिचरू सरदार व्है जांद.
या कविता लिख्णु भी छौं, ता भितिर बीटिं कव्लाट च हुनु,
कि कखि यी का प्रकाशन का बाद लुकणु नि पोडलू कूणु,
सुच्नु छौं चट्ट बगल कु शर्मा भै कु नाम लिख देन्दु कवि का नाम मा,
और दिखलू कथगा दिन तक खड़ू राद लोला चढ़चडू घाम मा.
जन्दौ छौं कि मेरा भिंडी भै बंद यी कविता सै बड़ा खुश होणा होला,
और मिथें वीर पुरुष कि संज्ञां देना होला,
पर दगिड्यो! तुमारी यी खुसी खुन झणी क्या भुगतण पोडलू आज,
घौर, दफ्तर, देस-विदेस, जौं ता जौं कख, जख-तख ता हुयू "जनन्युराज".
विजय गौड़ "शर्मा जी का बुल्यानुसार"
सर्वाधिकार सुरक्षित (मी चा सुरक्षित रौं नि रौं)
०९ अगस्त २०१२
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1.जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
जनान्यौं कू राज..
आज तक कैन नि जाणी,
होंदु यनु जनु बगदु पाणी,
माया मोह अर ममता की धनी,
पर जब विकराळ,
जन उत्तरकाशी मा भागीरथी,
कविवर डन्न भी पड़दु,
आपन लिखि,
क्या बोन्न तब?
थोडा घंगतोळ मा छौं,
तुमारी तरौं......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
९.८.२०१२
god ji mi chadu ki aap yu kavitaon thai sageet ka dagad piroi ki uttrakhand ki aam janta ka beech ma bhejo ....mi aap se bahut prabhvit chhu kile ki Narendra singh Negi ji ka bad shayad aapka hi kavita padhna ku ar sunana ku man kardu ... |
gajabbbbbbbbbbbb...
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