सर्वप्रथम तो भारतीय सनातन सभ्यता से जुड़े और विश्व शान्ति के प्रत्येक प्रहरी को ६ दिसम्बर अपितु 'शौर्य दिवस' की शुभकामनायें। ऐंसा दिन जब एक आतताई द्वारा राष्ट्रनायक श्री रामचंद्र जी के जन्मस्थान पर बनाये गये ढाँचे का अस्तित्व कारसेवकों द्वारा समाप्त कर दिया गया और अब उस स्थान पर पुनः विश्व शाँति के, शौर्य के प्रतीक स्थल का पुनर्निर्माण आरम्भ हो चुका है। इस शुभ दिवस पर कुछ सामयिक विषयों पर जोकि भारतीय सभ्यता से जुड़े हैं, पर अपने विचार लिखना अति आवश्यक हैं और वे विषय इस प्रकार हैं।
प्रथम विषय जिस पर लम्बे समय से लिखना चाह रहा था परन्तु उचित समय नहीं आ पाया। आज वह अवसर मुझे दिया नवाब पटौदी के पुत्र सैफ अली खान ने। अपनी आने वाली फिल्म 'आदिपुरुष' के सन्दर्भ में उन्होंने साक्षात्कार दिया है और उनका कहना है, 'We will make Ravan Humane, justify his abduction of Sita'. पहले मुझे लगा कि छोड़ो इन पर क्या टिप्पणी देनी है लेकिन पुनः सोचा कि इन फिल्मों का जनमानस पर वर्तमान में कितना प्रभाव है, उसे आज के भारतीय समाज का मूल्याँकन कर समझा जा सकता है। अतः इस पर लिखना आवश्यक हो गया। सैफ अली खान स्वयं को जिस 'कुरानिक सभ्यता' से जोड़ते हैं (उनका नाम जिस अनुसार है) उसमें एक शब्द है 'अली' जोकि इनके नाम में भी है , क्या कभी यही सैफ उस अली की कहानी पर सच्ची फिल्म बना पायेंगे? 'अली' के बच्चों का कत्ल करने वाले के बारे में और उसकी प्रेरणा किस साहित्य से आती है, उस पर कुछ कह पायेंगे यदि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मक स्वतंत्रता की बात करते हैं तो ? क्या यही सैफ यदि कल इनकी पुत्री को कोई अगवा कर लेता है उस लुटेरे/आततायी का "humane" पक्ष रखने की बात करेंगे? सुशांत सिंह राजपूत और इनकी पुत्री के संबंधों और उसकी परिणति के बारे में इन्हीं के फिल्म उद्योग से किस प्रकार की सूचनाएँ आयी उससे जनसामान्य अनभिज्ञ नहीं है। क्या यही बॉलीवुड 'इस्लाम' पर अं'डरस्टैंडिंग मुहम्मद' जैंसी पुस्तक के अनुसार कोई फिल्म 'रचनात्मक स्वंतंत्रता' के नाम पर बना सकता है? क्या यही बॉलीवुड/सैफ 'Satanic Verses' लिखने वाले सलमान रुश्दी की पुस्तक पर बैन लगने और फतवा जारी किये जाने पर कुछ कह रहा था? क्या चार्ली हेब्डो के स्टॉफ की हत्याओं के समय या अभी वर्तमान में एक शिक्षक की इन्हीं सैफ के मजहब वालों द्वारा पेरिस में हत्या करने पर इन्होंने कुछ मानवता की बात की या इनकी टिप्पणी मात्र हिन्दू समाज तक ही सीमित है?
स्मरण हो कि इसी बॉलीवुड से बहुत से छद्म हिन्दू कठुआ की घटना के समय प्लेकार्ड लेकर अपने हिन्दू होने पर दुःख प्रकट कर रहे थे पर क्या यही सैफ या इनकी 'तथाकथित हिन्दू' बेगम पेरिस में शिक्षक की हत्या किये जाने पर 'इस्लाम' को उत्तरदायी ठहरा रहे थे जबकि यह कृत्य मात्र इस्लाम के प्रोफेट के लिए कुछ कहे जाने के कारण हुआ था। इन सब प्रश्नों का उत्तर है "नहीं" क्यूंकि उस समय ये सब 'एथीस्ट' वाला चोला ओढ़ लेंगे।
यही बॉलीवुड भारतीय समाज को पितृसत्तावादी (patriarchal) बताकर उसे समाप्त करने की पहल की बात करता है (सुशांत सिँह की तथाकथित महिला मित्र की पोशाक पर लिखा कोट आपने देखा ही होगा या फिर ट्विटर के सीईओ की भारत यात्रा के समय का नैरेटिव) परन्तु मैं इनका दोहरा चरित्र इन्हीं 'सैफ अली' के उदाहरण से समझाता हूँ। कहते हैं ना कि 'Charity begins at Home'. इनके पिता का नाम था मंसूर अली खान। विवाह हुआ प्रेम के नाम पर एक हिन्दू से जोकि स्वयं इसी फिल्म उद्योग से थी और शर्मिला टैगोर हो गयीं 'आयशा बेग़म'. पुत्र हुआ 'सैफ अली खान' पुत्री 'सोहा अली खान' . प्रेम विवाह था तो शर्मिला को आयशा होने की आवश्यकता क्यूँ हुयी? क्या किसी भी बच्चे का नाम शर्मिला 'रवीन्द्र' या 'लक्ष्मी' रख पाईं यदि यह पितृसत्तात्मक परिवार नहीं था तो? भारत में क्रिकेटर और फ़िल्मी नायक/नायिकाएँ तो तथाकथित खुले विचारों वाले होते हैं ना? शर्मिला को अपनी विवाह पूर्व की पहचान भी छोड़नी पड़ी और अपने बच्चों के नाम रखने का अधिकार भी नहीं मिला और 'my rights' की बात सर्वाधिक यही 'आधुनिक' करते हैं। अब इनकी अगली पीढ़ी में चलते हैं। स्वयँ 'सैफ' पहला विवाह करते हैं 'अमृता सिंह' से। बच्चों के नाम 'इब्राहीम अली खान' और सारा अली खान। अब तो दूसरी पीढ़ी में भी किसी अन्य समुदाय से विवाह हुआ था तो एक बच्चे का नाम 'शविंदर' या 'रविंदर' ही रख लेते पितृ सत्ता के विरुद्ध (सेक्युलर मूल्यों के अनुसार)? और आगे देखेँ। 'सैफ' मियाँ अब अमृता को छोड़ देते हैं और पुनः चलते हैं आगे की खेती करने। विवाह होता है 'करीना कपूर' से और अबकी बार बच्चे का नाम 'तैमूर अली खान' . उनकी क्रांतिकारी पत्नी पुत्र का नाम 'पृथ्वीराज कपूर' या थोड़ा मातृ सत्ता थोड़ा सेक्युलर होते हुये पृथ्वीराज अली खान ही रखवा देतीं ? स्मरण हो कि इसी बॉलीवुड में नीलिमा अजीम अपने हिन्दू पति पंकज कपूर से उत्पन्न बच्चे का नाम 'शाहिद' रखवा लेती हैं वह शाहिद भी है और कपूर भी क्यूंकि पिता पंकज है।
दूसरा विषय जिस पर कुछ पंक्तियाँ लिखना आवश्यक है वह है किसान रैली में आये योगराज सिंह पर। यह भी विषय सनातन सभ्यता का अतः उत्तर आवश्यक। बिल पर बात होती तो वो उनके और सत्ता के बीच का विषय था।
उनका कथन है कि, 'ये वो कौम है जिन्होंने हज़ारों साल गुलामी की, इनकी औरतें टके-टके के भाव बिकती थीं' तो सुनों आर्थर मक्लिफ्फ़ के शिष्यो! हम तो हैं १० गुरुओं और गुरु ग्रन्थ साहब को मान ने वाले और तुम बोल रहे हो अपने गुरु मक्लिफ्फ़ की भाषा। हमारे गुरुओं ने तो शीश दे दिये सनातन के लिए और तुम्हारे वाले ने तुम्हारी मति ऐंसी पलटी कि तुम अब स्वयं से ही घृणा करने लगे हो। हम वो हैं जो हज़ारों साल के बाद भी अपना मूल नहीं भूले और आज भी युद्ध कर रहे हैं धर्म (not religion) के लिये। रही बात 'औरत' की तो तुम स्वयँ अपने अंतर्मन में झाँको और अपनी पत्नी के साथ क्या किया, स्वयं से पूछो? सारा भारत जानता है टी बी माध्यमों से तुम्हारी पत्नी ने क्या कहा तुम्हारे बारे में। सनातन सभ्यता में स्त्री को 'औरत' नहीं कहते और न ही माल ए गनीमत इसलिये नारी को वस्तु समझने वाली सोच जिस गुरु ने तुममें डाली, तुम उसी की वाणी बोलोगे। तुम्हें अंतिम सुझाव और वह ये कि शीघ्र नाम बदल लो, 'योगराज' शोभा नहीं देता तुम्हें। योग जिस सनातन परंपरा का शब्द है वह 'एकात्म' की बात करती है और 'योग' का मूल है 'प्रकृति के साथ समन्वय' परन्तु तुम्हारी बुद्धि में इस प्रकृति स्वरूपा 'नारी' के लिये जो है वह भारतीय नहीं।
आलेख पढ़ने वाले सभी लोगों से यही विनती कि तथ्यों के आधार पर ऐंसे लोगों को उत्तर अवश्य दें, मैं वही प्रयास कर रहा हूँ।
भारत माता की जय, वन्दे मातरम्, जय श्रीराम!!
विजय गौड़
दिसम्बर ०६, २०२०
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