Saturday 25 July 2020

विजय की बुद्धिजीविता: आलेख २

भारतीय दृष्टि (Indian lense) और पाश्चात्य/अब्राहमी दृष्टि (Western lense)
भूमिका:

यह एक ऐंसा विषय है जिस पर मैं निरंतर पिछले कुछ वर्षों से अध्ययन कर रहा हूँ और जितना अधिक अध्ययन करता जा रहा हूँ, उतनी ही स्पष्टता आती जा रही है। इस विषय पर लिखना इसलिये भी और आवश्यक हो गया है क्यूँकि १९९० के दशक के आस-पास की पीढ़ी की स्तिथि आज यह है कि भारतीय दृष्टि (Indian lense) कुछ होता भी है, वह यह स्वीकार करने की भी मन:स्तिथि में नहीं है। जितना पाश्चात्य (brainwashed) वर्तमान भारतीय शिक्षा और समाज के साथ भारत में रहने वाला किशोर/नवयुवक या युवती है, उतना कदाचित अमेरिका में पलकर बड़ा हो रहा भारतीय पृष्ठभूमि का किशोर-किशोरी भी नहीं है। अपनी पहचान को, अपने मूल को जितना कम आंकने की प्रवृत्ति भारतीयों में है, वह कदाचित ही मैं किसी अन्य देश में देख पाता हूँ। यह मैं विश्व के २० से अधिक देशों में स्वयम् रहने के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ। इसका मुख्य कारण यह भी है कि भारत ही विश्व की एकमात्र जीवित सभ्यता है जिसमें निरंतरता शेष है अन्यथा शेष समकालीन सभ्यताएँ तो समाप्त कर दी गयी। यूनान, रोम, माया, परसिया, बेबिलीयोन, मेसोपोटामिया आदि अनेक प्राचीन सभ्यताएँ वर्तमान में मात्र म्यूज़ीयम में ही शोभायमान हैं। उनकी सारी अच्छी बातें आज की विस्तारवादी शक्तियों ने अपने नाम कर दी हैं और वे मात्र पेगंन संस्कृतियों के रूप में निम्न दृष्टि से देखी जाती हैं। भारत के साथ यह शक्तियाँ लगभग १००० वर्ष के दलन के बाद भी वह नहीं कर पायीं जो इन्होंने अन्य सभ्यताओं के साथ ५० से २०० वर्षों के अपने दमनकारी शासन द्वारा कर दिया। अवश्य ही आर्थिक रूप से भारत निम्न स्तर पर गया परंतु उसने अपनी सनातन पहचान को नहीं मिटने दिया। उसके बाद आया वह समय जिसने भारतीय मानस को सर्वाधिक प्रभावित किया और यह कहें कि भारतीय दृष्टि को क्षीण करने तथा क्रमशः समाप्त करने की नींव रखी। यह समय था सन १९४७ जब भारत से अंग्रेज गये और वह भी भारत का विभाजन करने के उपरान्त। एक सोच को पाकिस्तान मिल गया और दूसरी सोच जो शासक बनकर भारत में उभरी, वह भारत के मूल से पूर्णरूपेण अनभिज्ञ और ये कहें कि घृणा भाव रखने वाली तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत का नया इतिहास भारत के बाहर या बाहरी सोच द्वारा लिखा जाने लगा और भारत के वास्तविक इतिहास को ‘मिथोलोजी’ कहकर प्रचारित किया जाने लगा और आज स्तिथि यह है कि स्कूल से लेकर प्रशासनिक सेवा की पुस्तकें इसी नव-इतिहास से भरी पड़ी हैं। आप दो भारतीयों को ही आपस में लड़ते पाएँगे अपने इतिहास को लेकर। भारतीय मानस को भ्रमित करने का जितना प्रयास पिछले ७ दशकों में हुआ, उतना १००० वर्ष भी नहीं कर पाये। इसमें प्रयोग किया गया आधुनिक तकनीकी का। पाठ्य पुस्तकों, मीडिया से लेकर सिनेमा तक सम्पूर्ण शक्ति से प्रयास किये गये कि कैंसे भारतीय को और सब कर दिया जाय पर भारतीय मूल से जुड़ा न रहने दिया जाय और इस हेतु उसमें अपनी पहचान को लेकर हीन भाव डालना अति आवश्यक था।

कृपया यह सूचित हो कि इस लेख का विषय इतिहास नहीं है। भूमिका मात्र आने वाले भागों में विषय को समझाने के लिये दी गयी है।
इसके अग्रिम भाग में मैं उदाहरणों के साथ आपके समक्ष अपना अध्ययन रखूँगा जिससे पाठक स्वयम् तुलनात्मक अध्ययन कर सकें।
प्रथम उदाहरण: witch hunting के समकक्ष भारतीय मानस में सती प्रथा का झूठ स्थापित करना और उसको हटाने में लॉर्ड विलीयम वेंटिंग का महिमामण्डन।

क्रमशः-

विजय गौड़

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