Friday, 25 December 2020

सोचि छई!!

सोचि छई, साथ त्येरु-म्येरू होलु, जीवन भर कु। 
सुपन्यु छई, त्येरा संग मा देख्युं, मिन नयु घर कु।।
सोचि छई ......... 

                       (१)
ब्यालि देखि मिन तू, 
म्येरा चौकै तिरालि। 
जन ब्वनी होलि तू,
मै धैरि दे समालि।
औंगाल तिन, 
हाँ हाँ औंगाल तिन,
झप्प मै पर बोटि बिन कै डर कु। 
सुपन्यु छई ....... 

                      (२)
सोचदि होलि तू 
य कनि माया मेरी,
हाँ बौल्या हुयूं मी, 
तेरु बाटू हेरि-हेरि।
रात-दिन , 
हो-हो रात दिन,
मन मा ख्याल तेरु रान्दु ये भौंर कु। 
सोचि छई ... .. ... 

                    (३)
आँखि द्यखदी रैगें, 
बाटू हेरिदी रैगें,
लाटा मन की वा तीस, 
तीस ह्वैकि रैगीं।
सुपन्यु मेरु 
हाँ हाँ सुपन्यु मेरु,
झणी किलै यु ह्वैगे आज कै हौर कु। 

सोची छई  ............ 
सुपन्यु छई .............. 

कॉपीराइट@विजय गौड़ 
मूल रचना: मई २००७, ग्वाटेमाला, सेंट्रल अमेरिका 
संशोधन: जनवरी ०४, २०२० 

No comments:

Post a Comment