Sunday, 14 April 2013

चला, अग्नै कि छ्वीं लगौन्ला!!!!!

रात गै, अर बात गै,
कारा तुम शुरुवात नै,
व्यालि राति कु अंधेरु छोड़ि,
अब फजेलकु उज्यालम जौंला, 
चला, अग्नै कि छ्वीं लगौन्ला।।

देरादूण, गैरसैण,
तु गढ़वली, मि कुमैंण,
'बा' अर 'ख' मा ढोलदि माटु ,
छुचों खैरिन याँन नि मिटेंण,
आवा, जरा सबि दगड़म सोचा,
यन अफि-अफि कख तलक जौंला?
चला, अग्नै कि ....

तु दिल्लि वलु, मि गौं वलु, 
तु गाड़ि वलु, मि खुटों वलु,
घार-बूँण सच्यूँ भौत ह्वै ग्ये,
हमखुणि कन्ना कु क्य ई रै ग्ये?
खुज्या त कुच इखि यनु,
कि फेर दिल्लिउंद धक्का नि खौंला,
चला, अग्नै कि ......

डाम हि डाम,
ये मुल्का हे राम,
विकास अद्दा कत्तर कु बि नि,
रौल्युं-२, बिनासौ ताम-झाम,
जरा युं डमदरों से पूछा त आज ,
चूंडी कि जूँगा अर खैंचि कि नौला,
चला, अग्नै कि ...........
     
सूर्य अस्त, छवटा-बड़ा सबि मस्त,
दारुन हुयूँ सर्यु पाड़ तंदुरस्त, 
प्योंण-पिलौणा कि छ्वीं नि लगौणि,
पाड़यो, स्य दारु अब घौर नि लौणि,  
जरा बग्तै कि बात बि बींगा,
बगत बुनु अब होसमि रौंला,
चला, अग्नै कि ...............

रंग-ढंग कुच नि बदलि १२ सालम,
बस जरा मुल्का कु नौ बदल्ये ग्ये,
पैल लखडों मा दाल छै गल्दि,
अब जरा गैस सलेंडर ऐ ग्ये,
एकि तुराक मा धीत भुरेणकि  
अब वीँ लाटि टक्क छोड़ि द्यौंला,
चला, अग्नै कि .................

@ विजय गौड़ 
१४/४/२०१३ 
संसोधन: २९.१२.२०१३ 

2 comments:

  1. बहुत भलू लेखी आपन ,सभी उत्तराखंडियो तै छेत्र बाद भुलै क एक जुट व्हे कि ,उत्तराखंड का बिकाश का बारा मा सोचण की शख्त जरूरत छ ,,बहुत सुन्दर सन्देश ,,,

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  2. आभार आपकु, मुल्के कि स्तिथि से चिंतित छौं, त य कविता लिखी दये।

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