Sunday, 21 April 2013

दगिडया, सौंजडया, लठ्यालि!!!!


दगिड्यो,

समाज खुणि मि लगातार लिखणु हि रांदु, आज जरा अपणि श्रीमति जी खुणि कुच लिखणु ज्यु बुन्नु। ब्यो से पैलि सब कुच वीं पर हि लिखदु छौ, बाद मा कलम हौर बि लिखण बसि ग्ये लेकिन यान्कु यु मतलब नि च कि मि ब्यो क बाद 'रोमांटिक' नि रौं। आप लोग बि पौढ़ा, छै छौं न मि अज्युं बि 'रोमांटिक'. अर या कविता आप अपुतैं रोमांटिक बतौण खुणि बि प्रयोग कैर सकदन। अपणा ज़ज्बात बंटणु छौं, आसा च पसंद आलु।   

मि बिंज्युं रौंऊ 
य सियूँ रौंऊ
मन मा त्वी रान्दि छै,
मि त्वैइ बतों
य़ नि बथों 
मै ते त्वी स्वान्दि छै
बुलणा खुणि त ईं दुन्या मा 
झणि कथगा अपणा छन
पण मैखुणि म्येरि अपणि
म्येरि दुन्या बस त्वी छै 
मन मा त्वी रान्दि छै .....
मैते त्वी स्वान्दि छै ....... 

कबि तू स्वीणों मा
कबि वीणों मा आन्दि छै 
मुरझईं यीं ज़िन्दगी मा 
जीणे मनसा दये जान्दि छै 
मि पिड़ा मा रौंऊ
अर रूणु रौंऊ
मैते त्वी हँसादि छै
मि त्वै बथों ..........................

कबि तू म्येरि दगडया
कबि सौंजड्या बणि जान्दि छै
कबि तू म्यारा बाना 
क्य-२ खैरि खान्दि छै 
यु लाटु मन 
जब अधीतो होंदु 
धीत त्वी बंधांदि छै 
मि बिंज्युं रौंऊ .......................

कबि तू मयलि होन्दि 
कबि तू रुसान्दि छै 
कबि आंख्यों न बतान्दि 
तू बस मैते चान्दि छै 
तू म्येरि छै
मि त्येरु छौंऊ 
दुन्या छ्वीं सरान्दि गै 
मि त्वै बथों .........

विजय गौड़ 
२०/४/२०१३    
      
     

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