Saturday, 9 March 2013

आख़िर वजह क्या थी??

दोस्तों! आज बड़े दिन बाद खुद से फिर मिला।चंद सालों से कुछ सो सा गया था, कल शाम जनाब राहत इन्दौरी और जनाब मुन्नवर राणा को बहुत वक़्त बाद सुना। क्या खूब लिखा है दोनों ने, क्या खूब महसूस किया है। कहते हैं न कि बुझी मशाल को फिर से जलने के लिए इक अदद चिंगारी की जरुरत होती है, ये दोनों उजाले से बेइन्तहा रोशन मशालें मुझे फिर कुछ लिखने को कह गयी, जो लिखा वो नज़र कर रहा हूँ, उम्मीद, कि गज़ल आपके दिल पे दस्तक देगी। गुश्ताखी माफ़।

तेरे 'ना' कहने की आख़िर वजह क्या थी?
हमसे यूं दूर रहने कि आख़िर वजह क्या थी?

तुम तो ख़ुद ही वाकिफ़ थीं मेरे हाल-ए-दिल से
इस ज़ज्बात के ढहने की आख़िर वजह क्या थी?
तेरे 'ना' कहने की आखिर..........

मेरी ख्वाइश की गर तेरे दिल में जगह नहीं,
हर रोज खिड़की पे रहने की आखिर वजह क्या थी?
तेरे 'ना' कहने की आखिर..........

दरिया को समंदर से नहीं मिलना था गर,
फिर उसके बहने की आखिर वजह क्या थी?
तेरे 'ना' कहने की आखिर..........

मेरे हालात का यूँ तो तुझपे कोई असर नहीं,
मैं याद करूं तो तुझे हिचकी आने की आख़िर वजह क्या थी?

तेरे 'ना' कहने की आखिर..........

ऐ परवरदिगार! मैं अब भी तेरी साजिश पे सोचता हूँ,
मुझसे 'हाँ' अर उससे 'ना' कहने की आखिर वजह क्या थी?
तेरे 'ना' कहने की आखिर..........

विजय गौड़
10/03/2013

# पसंद आये तो आपसे कुछ लिखने की उम्मीद करूँगा, आप अपने खयालात से जरुर रूबरू करवाएं!!!






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