पैलि-पैलि प्रीत का द्वी आखर मै स्ये लिख्ये नि ग्ये,
नया चखुलों थैं उड़ण मा बगत त लगदु हि च भै।
गात कि बात नि छै, कैका मन्न तक पौन्चणु छौ,
इथगा दूर चलण मा बगत त लगदु हि च भै।
नया चखुलों थैं उड़ण मा.......
ग्येड़ ज्व प्वैड़ ज़ा कै मनखी क मन मा,
कथगा बि कारा जतन, खुलण मा बगत त लगदु हि च भै।
नया चखुलों थैं उड़ण मा........
जिकुड्यो नासूर खुणि दवै त ढूँढी यालि हमन पर,
बड़ा दुखदों थैं भ्वरैण मा बगत त लगदु हि च भै।
नया चखुलों थैं उड़ण मा........
इथगा दिन दगड़ा-दगड़ी चल्नै आदत सि ह्वै ग्ये छै,
नयु बाटु खुज्यण मा बगत त लगदु हि च भै।
नया चखुलों थैं उड़ण मा........
विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्व प्रकाशित
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