क्वी दामिनी बुन्नु, क्वी निर्भया त क्वी अमानत!
वीन त जाणु छौ और वा चलि भी ग्ये,
वाह रे म्येरा देस, म्यरु समाज,
त्वै परैं बस अर बस, लानत!!
जै देस मा माँ-भैण्यो कु सम्मान नि,
जै देस मा इंसान, इंसान नि,
दरिंदा जख देखा, जना देखा
लुटणा छन, नुचणा छन,
आखिर कख हर्चणि ये समाज बीटिंन इंसानियत,
क्वी दामिनी बुन्नु, क्वी निर्भया त क्वी अमानत!
व्यवस्था कु नौ बिवसता ह्वै ग्ये अज्क्याल,
शासन मा सांस नि रै ग्ये, सब्यों न दयेख्याल,
निर्दोस हथकडयों मा जकिड्यू च,
दोषी खुल्ला घुम्णो अर हैंकु शिकार खुज्णु च,
कखी वर्दी मा त कखी बिन वर्दी,
खून चुसणी हैवानियत
क्वी दामिनी बुन्नु, क्वी निर्भया त क्वी अमानत!
नेता बुन्नान पुलिस ठिक नि
पुलिस बुन्नी समाज ठिक नि,
जु मुंड उठाणु वेमा डंडा बर्स्येणा,
बर्फिलू पाणि कि वौछार बुन्नी, त्येरि जगह यिख नि,
तुमरू राज-पाट बस दयेली भितिर तक हि च,
बक्की सर्या देस पैंसा वलों कि मिल्कियत,
क्वी दामिनी बुन्नु, क्वी निर्भया त क्वी अमानत!
हे विधाता! त्वै त्येरा सौं, ये मुलुक अब बेटी नि पैदा होण दये,
सच बुन्नु छौ अब मिथै त्येरा नौ पर भि विस्वास नि रै ग्ये,
मिन सूणी त्रेतायुग मा रामराज छौ, सब सुरक्षित छाया,
पर समय की पराकास्ठा दयेखा,
कलयुग आन्द -आन्द 'रामसिंह' सबि मर्यादा भूलि, अफ़ी बलात्कारी ह्वै ग्ये,
सडकों मा जख देखा भेड़िया हि भेड़िया,
मानवता झणी कख व्है नदारद,
क्वी दामिनी बुन्नु, क्वी निर्भया त क्वी अमानत!
वीन त जाणु छौ और वा चलि भी ग्ये,
वाह रे म्येरा देस, म्यरु समाज,
त्वै परैं बस अर बस, लानत!!
विजय गौड़ 'शर्मसार'
29/12/2012
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