Friday, 21 October 2022

समय क दगड़ मा!!

बगत सदनि इकसनि कब रै,
कालचक्र कि सीख तै, 
सिखण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।  

तुमन कैदिन वूँ से लूछिकि 
अपणा भितर भोरिनि,
त आज बुलडोजर चलण बि
दयखण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।। 

समोदर मँथन मा अमरित इ ना
निकळद बिष बि 
कै न कै त वु बि 
घुटण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।। 

जै थैं देखा वे ई 
सोलि खाणै आतुरि 
लाटाओ पर य नरंगि 
च्वलण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।। 
 
हाँ छुचौं कबि कमाँदि होलि 
तुमरि फिलम ३०० करोड़ 
पर अब लोग साँटा ह्वै गेनि 
मनण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।। 

छत्ति मा टैटु न हि 
दाल नि गलणि रै चकड़ैतो 
"तु भलि लगदि मिथैं"
ब्वलण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।। 

खाण-कमाण कु माना 
चल ग्याँ बिरणा मुलुक 
पर अपड़ि गढ़वळि मा विज्जू
ल्यखंण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।। 

रचना: विजय गौड़ 
स्थान: मॉडेस्टो, कैलीफॉरनिया 
फेसबुक पर प्रकाशित।
वर्ष: २०२२ 
 

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