बगत सदनि इकसनि कब रै,
कालचक्र कि सीख तै,
कालचक्र कि सीख तै,
सिखण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
तुमन कैदिन वूँ से लूछिकि
अपणा भितर भोरिनि,
त आज बुलडोजर चलण बि
दयखण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
समोदर मँथन मा अमरित इ ना
निकळद बिष बि
कै न कै त वु बि
घुटण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
जै थैं देखा वे ई
सोलि खाणै आतुरि
लाटाओ पर य नरंगि
च्वलण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
हाँ छुचौं कबि कमाँदि होलि
तुमरि फिलम ३०० करोड़
पर अब लोग साँटा ह्वै गेनि
मनण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
छत्ति मा टैटु न हि
दाल नि गलणि रै चकड़ैतो
"तु भलि लगदि मिथैं"
ब्वलण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
खाण-कमाण कु माना
चल ग्याँ बिरणा मुलुक
पर अपड़ि गढ़वळि मा विज्जू
ल्यखंण त प्वाड़लि।
समय का दगड़ मा हिटण त प्वाड़लि।।
रचना: विजय गौड़
स्थान: मॉडेस्टो, कैलीफॉरनिया
फेसबुक पर प्रकाशित।
वर्ष: २०२२
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