Wednesday, 3 July 2013

हिटा भै-भैण्यो साथ-साथ!!!

खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च,
हिटा भै-भैण्यो साथ-साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर,
उठा भै-भैण्यो, मिला त हात

क्वी लचार त्वै धै च लगाणु,
मुलुक हुयुं ल्वै-ल्वै च बथाणु,
रौल्यों गलणी स्यीं गात क खातिर,
रीटा भै-भैण्यो ताल-मात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................

कखि बचपन ब्वै-बाब खुज्याणु,
कखि क्वी मन अफु धीत बंधाणु,
दिन मा हुईं स्यीं रात खातिर,
कारा भै-भैण्यो, उज्यलै कि बात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................

कुच दिब्तों कु रैबार च आणु,
पण लाटा त्वे स्ये नि बिन्ग्याणु,
ये रुसयाँ बद्री-केदार का खातिर,
सोचा भै-भैण्यो, मिलि-बैठि साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर, उठा ......................

रचना: विजय गौड़
०३।०७।२०१३
कविता संग्रह, "रैबार" बिटी ...

Copyright @ Vijay Gaur 03/07/2013


  

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