Saturday, 25 July 2020

विजय की बुद्धिजीविता शृंखला: आलेख १

सेलिब्रिटी (Celebrity): एक मानस उध्योग
एक लम्बे अंतराल से इस विषय पर मेरे मानस में गूढ़ चिंतन चल रहा था और मेरा अंतर्मन मुझे निरंतर इस पर अपना विचार लिखने हेतु प्रेरित कर रहा था। अपना विचार लिखने के पूर्व में ही मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मेरा मानस स्वयम् इस शब्द से सुशोभित लोगों के प्रभाव में लंबे समय तक रहा है और इस प्रजाति को नायक के रूप में देखता रहा है। कारण कदाचित यह भी रहा कि प्रत्येक मनुष्य के स्वभाव में अनुसंधान (research/analysis) की प्रवृत्ति नहीं होती और न ही उसके पास समय होता है।
मुझे स्मरण होता है बॉलीवुड के एक मनोरंजनकारी (Bollywood entertainer) द्वारा किया हुआ एक विज्ञापन का जिसमें वह गोरे होने की क्रीम बेच रहा है और आज भी मैं यँहा अमेरिका में भी भारतीय किराने की दुकानों में वह क्रीम बिकते हुये देख रहा हूँ। ऐंसे ही साबुन के विज्ञापन भी हम देख सकते हैं भारतीय टेलिविज़न पर जिसमें उसे गोरा होने के लिये प्रचारित किया जाता है और इन सेलिवृटियों का ही उसमें भी प्रयोग होता है। यँहा यह ज्ञात हो कि ये लोग स्वयम् इन उत्पादों का प्रयोग करते हैं या इन्हें इस विषय का कुछ भी ज्ञान होता है, यह कोई मापदण्ड नहीं है।
इसका दूसरा उदाहरण जिसने मुझ पर यह लेख लिखने के लिये एक प्रकार से दबाव सा डाला, उसका भी वर्णन करता हूँ। यह उदाहरण अमेरिका से है जँहा का मनुष्य तो भारत में पॉप कल्चर (बॉलीवुड, मीडिया आदि) द्वारा बुद्धिजीविता की पराकाष्ठा के रूप में प्रचारित किया जाता है। मैं पिछले दो दशक से अधिक समय से अल्कोहोल उध्योग में कार्य कर रहा हूँ और अपने क्षेत्र में एक विशेषज्ञ के रूप में देखा जाता हूँ। अपने इसी कार्य के कारण मुझे अमेरिका से मैक्सिको निरंतर जाना होता है। वँहा एक उत्पाद बनाया जाता है ‘टकीला’ जो इस समय एक अल्कोहली पेय के रूप में विशेष प्रचलित है। वँहा जाकर पता चलता है कि हॉलीवुड का एक सेलिब्रिटी वँहा ‘टकीला’ बनवाता है और अमेरिका में वह उत्पाद बहुत बिकता है। कारण मात्र उसका सेलिब्रिटी (जनमानस पर प्रभाव) होना न कि उस पेय का कोई ज्ञान। पिछले ही वर्ष उसने वह ब्रांड किसी बड़ी कम्पनी को एक बिलीयन डॉलर में बेच दिया। इस बार पुनः मैक़्सिको गया तो पता चला कि एक और दूसरे सेलिब्रिटी ने अपनी ‘टकीला’ ब्रांड बनाना आरंभ कर दिया है और अवश्य ही ४-५ वर्ष बाद वो भी १-२ बिलीयन इसे किसी अन्य समूह को बेच देगा।
इन उदाहरणों से मेरा यह निष्कर्ष निकला कि किस प्रकार एक मनुष्य को पहले फिल्मों में एक नायक के रूप में दिखाकर एक छद्म उत्पन्न किया जाता है और उसके उपरांत उस छद्म छवि से जनसामान्य के मन पर हुये प्रभाव का प्रयोग कर व्यवसाय किया जाता है। यदि मैं जो स्वयम् उस ‘टकीला’ को बनाने का आदि-अन्त समझता है, उसे लेने के लिये विज्ञापन करूँ या उस ब्रांड से जुड़ूँ तो कदाचित एक दो के अतिरिक्त कोई भी उसे मात्र मेरे कहने पर न ले परंतु जब यही सेलिब्रिटी कहता है तो मात्र उसके कहने पर अनेकों लोग अपने कठिन परिश्रम का पैसा लगा देंगे (दिल्ली में आम्रपाली अपार्टमेंट के बारे में विदित ही है)। कहने का आशय यह है कि किस प्रकार मात्र एक व्यावसायिक कार्य हमारे मानस को कैंसे प्रभावित करता है कि हम बिना अधिक जानकारी लिये मात्र इनके कहने से ही कोई उत्पाद प्रयोग करना आरंभ कर देते हैं। इसी व्यवसाय का दूसरा रूप Facebook जैंसे माध्यमों पर देखने को मिलेगा फ़ैन क्लब के रूप में। यह भी पूर्ण व्यावसायिक, नैतिकता कभी भी मापदंड नहीं। इन लोगों का जनमानस पर प्रभाव ही है कि इन्हें उन विषयों पर भी सुना जाता है जिसका इन्हें कोई भी ज्ञान नहीं होता।
क्रमशः........
लेख: विजय गौड़

No comments:

Post a Comment