Tuesday, 18 September 2012

"पहाड़ी नि छै त कु छै तू??"

क्योकु छै अपणी पछ्याण लुकाणु,
क्योकु छै अपु पर सवाल उठाणु,
क्योकु छै अपणो से दूर तू जाणू,
क्योकु छै झूटि सान चिताणु,
अन्वार मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?

कख छै बस्ग्यली पाणि सि बगणु,
कैकु छै तू घामपाणि सि ठगणु,
क्योकु  छै बिरणा मुलुक तू भगणू,
क्योकु चौका-तिबारयु स्यु मन्न नि लग्णु,
छुयों मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?

क्योकु  तेरु नौनु पहाड़ी नि बिन्ग्णु,
क्योकु  तेरा गों वू अपणु गों नि बुल्णु,
क्योकु  दाना ब्वे-बाबों का बारा नि सुच्णु,
क्योकु  त्वे से गोर-बखरू नि खुच्णु,
पैरवाक मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?  

आज त्यरू पहाड़ त्वे धै च लगाणु,
तू वेकु हि छै त्वे बडुली लगाणु,
कख छै लोला तू बिरड़दू जाणू,
त्वैकू ठंडी हवा, ठंडो पाणि धर्युं,
अर तू छै स्यीं गरम लू तख खाणु,
गरमन हाल बेहाल हुणू  जैकू,
पहाड़ी अर बस पहाड़ी छै तू......

विजय गौड़ 
सर्वाधिकार  सुरक्षित
१८.०९.२०१२

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Jagpal Rawat बिलकुल सही बात गौर भै, हम थै अपरू पैछान नि छुपान चैन्द. सही बात च कि "पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?" बहुत बढ़िया ............. मन खुश कर दिया... बस लिखदा राव अर हम थै इन चटपटा कविता सुनाण राव....