कब तक इस 'छद्म आवरण' में रहना होगा?
कब तक इस 'कुधारा प्रभाव' में बहना होगा?
मौन रहना भी तो एक मूक स्वीकृति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
(१)
इस अमन की आशा के,
इस पुरुस्कारों की अभिलाषा के,
इस आक्रांताओं की भाषा के,
इस मिथ्या की परिभाषा के,
भवन को एक न एक दिन तो ढहना होगा
भय में रहना भी तो मन की विकृति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
(२)
इन 'झूठ' की कहानियों को,
इन 'भाईयों' की मनमानियों को,
इन 'कागजी' राजा - रानियों को,
इन स्वार्थ की निशानियों को,
कब तक समाज को सहना होगा?
प्रश्न न करना भी तो एक बुरी प्रवृत्ति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
(३)
उस शस्त्र-शास्त्रार्थी परंपरा को,
उस ताण्डवी शिव-शंकरा को,
उस शक्ति-शाँति की परिकल्पना को,
उस सर्व-समावेशी संकल्पना को,
पुनः भारतभूमि से बहना होगा,
मेरे राष्ट्र की तो यही सनातन प्रकृति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
विजय गौड़
शनिवार, २५ जुलाई, २०२०
मॉडेस्टो, कैलीफॉरनिया।
(सुशांत सिंह की मृत्यु की एकतरफा मिथ्या कहानी और उस पर देशव्यापी आक्रोश को समर्पित, उस पवित्र आत्मा को श्रद्धांजलि स्वरुप)
कब तक इस 'कुधारा प्रभाव' में बहना होगा?
मौन रहना भी तो एक मूक स्वीकृति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
(१)
इस अमन की आशा के,
इस पुरुस्कारों की अभिलाषा के,
इस आक्रांताओं की भाषा के,
इस मिथ्या की परिभाषा के,
भवन को एक न एक दिन तो ढहना होगा
भय में रहना भी तो मन की विकृति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
(२)
इन 'झूठ' की कहानियों को,
इन 'भाईयों' की मनमानियों को,
इन 'कागजी' राजा - रानियों को,
इन स्वार्थ की निशानियों को,
कब तक समाज को सहना होगा?
प्रश्न न करना भी तो एक बुरी प्रवृत्ति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
(३)
उस शस्त्र-शास्त्रार्थी परंपरा को,
उस ताण्डवी शिव-शंकरा को,
उस शक्ति-शाँति की परिकल्पना को,
उस सर्व-समावेशी संकल्पना को,
पुनः भारतभूमि से बहना होगा,
मेरे राष्ट्र की तो यही सनातन प्रकृति है।
किसी न किसी को तो ये कहना होगा।।
विजय गौड़
शनिवार, २५ जुलाई, २०२०
मॉडेस्टो, कैलीफॉरनिया।
(सुशांत सिंह की मृत्यु की एकतरफा मिथ्या कहानी और उस पर देशव्यापी आक्रोश को समर्पित, उस पवित्र आत्मा को श्रद्धांजलि स्वरुप)
मुझे समझ नहीं आ रहा है लेकिन फिर भी उम्मीद है कि काम जारी रहेगा
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