हमरु समाज मा नाच-गाण थैंन एक विशेष वर्ग से जोड़ि कि दिख्ये जांदु छौ। पुरण्या बुल्दा छाया कि भलि मौ का नौना-नौन्यों थैंन यना काम नि कन चयेणा। बगत बदल्ये अर गढ़-कुमौ मा बि सिनेमा कि शुरुवात ह्वै ग्ये अर दिखदा-दिखदा लगभग हर जाति-वर्ग क लोग ये क्षेत्र मा औण लगि ग्येनि। अगर सिनेमा कि परगति क मापदण्ड से देखा त समाजन लम्बि दौड़ लगै यालि पण सवाल अबि बि यु इ च कि क्य हमरि सोच बदल्ये च नाच-गाण वलों क प्रति??? समाजकि त जथगा बि बदल्ये होलि पण क्य कम से कम ये क्षेत्र से जुड़याँ लोखुं कि सोच बदल्ये च ??? सोशल मीडिया त यनु नि बोलणु च??
याँका सन्दर्भ मा कुच दिन पैलि एक पोस्ट फेसबुक मा पढ़ना कु मौका मिलि जैमा कै कलाकार कु लिख्युं छौ कि फलणु नेता मै थैंन "बद्दी" बुलणु च। बद्दी/छटँगि/नचाड़ आदि कुच संबोधन छाया जु हमरु समाज मा परचलित छन यीं विधा म पारंगत लोखु क वास्ता। पुरणा बगत मा यि कलाकार लोग ब्यो-बरात्युं मा औंदा छाया अर सच बोलु त वाँकु अपणु एक आनंद छौ। बगत क दगड़ि हमरु समाज बि अग्नै बढ़ि, अब बि कलाकार अपना कार्यक्रम भौं-भौं क अवसरों पर कना छन, काम कमोवेश वि हि च, मनोरंजन कु, पण सोच बदल्ये च क्य? दिख्ये जावन त सिनेमा वीं कला कु इ त परिस्कृत रूप च, त यनु कनक्वै ह्वै सकदा कि जौंन यीं विधा थैंन हमरा समाज मा ज़ारी रखि, वेइ संबोधन से हैंकु कलाकार थैंन खुसि नि हूणि च, बल्कन वु अपणु विरोध समाजिक पटल पर बि रखणा छन। रै बात नेता जाति क लोखु कि यनि टिप्पड़ी कनै कि त वाँ पर मि अपड़ु बगत नि खपाण चाणु छौं, ईं प्रजाति पर जथगा कम बगत दिये जावन, उथ्गा समाज कि भलै च।
दास लोग, बद्दी-बादिन आदि हमरा समाज मा सँगीत क, लोकगीतों क वाहक रैनी अर वुं लोखु थैंन एका वास्ता पुरू सम्मान मिलणु चयेणु। यिख बात सोशल मीडिया कि हूणि च त एक और सन्दर्भ उठांण जरुरी च। "यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिनसिनाटी, अमेरिका" क संगीत विधा म एक मनखी छन डॉ० स्टीफन फिऑल जौंकु एक वीडियो भौत सा लोक जु सोशल मीडिआ म छन, फेसबुक/व्हाट्सप्प आदि पर, सब्यों न देखि होलु जैमा वु नेगी जी कु गीत "म्येरा डांडि-कांठ्यों कु मुलुक जैल्यु" गौणा छन। सबि गौरव महसूस करदन कि अग्रेज गढ़वळि गीत गाणु च। पण ये सँगीत थैंन जौंन हमरा समाज म बचै कि रखि वे इ संबोधन से हम बुरु मनणा छाँ? त क्य "बद्दी" गलत शब्द च? य याँ से कम से कम कलाकारों थैंन त गर्व महसूस कन चयेणु? यु सब चर्चा क विषय छन। म्येरू ब्यक्तिगत सोचणु यु च कि अगर हम यु संबोधनों थैं सम्मान से दिखला त यु नै भौणि क कलाकारों कु बद्दी/छटँगि आदि पुरणा कलाकारों क वास्ता सम्मान/श्रद्धांजलि होलि।
एक हैंकि बात सब्यों क सामणि रखण चांदु कि डॉ स्टीफन फिऑल से मै ईमेल से संपर्क मा रान्दु अर वु मनखि अपणु नौ ईमेल क आखिर मा "फ्योंलि दास" लिख्दु। य ह्वै सच्चि श्रद्धांजलि। हम लोखु थैंन अपणा पारम्परिक लोक कलाकारों थैंन सम्मान देणु होलु तबि समाज शिक्षित मने जालु, निथर सोच क्य बदल्ये ?
लेख मा जु बि संदर्भ लियाँ छन वु कै पर व्यक्तिगत नि छन, आस च कि याँ थैंन मात्र संदर्भ रूप मा दिखे जालु।
विजय गौड़
कैलिफ़ोर्निया
(मूल ग्राम: बवाणी, ब्लॉक नैनीडांडा, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड)
याँका सन्दर्भ मा कुच दिन पैलि एक पोस्ट फेसबुक मा पढ़ना कु मौका मिलि जैमा कै कलाकार कु लिख्युं छौ कि फलणु नेता मै थैंन "बद्दी" बुलणु च। बद्दी/छटँगि/नचाड़ आदि कुच संबोधन छाया जु हमरु समाज मा परचलित छन यीं विधा म पारंगत लोखु क वास्ता। पुरणा बगत मा यि कलाकार लोग ब्यो-बरात्युं मा औंदा छाया अर सच बोलु त वाँकु अपणु एक आनंद छौ। बगत क दगड़ि हमरु समाज बि अग्नै बढ़ि, अब बि कलाकार अपना कार्यक्रम भौं-भौं क अवसरों पर कना छन, काम कमोवेश वि हि च, मनोरंजन कु, पण सोच बदल्ये च क्य? दिख्ये जावन त सिनेमा वीं कला कु इ त परिस्कृत रूप च, त यनु कनक्वै ह्वै सकदा कि जौंन यीं विधा थैंन हमरा समाज मा ज़ारी रखि, वेइ संबोधन से हैंकु कलाकार थैंन खुसि नि हूणि च, बल्कन वु अपणु विरोध समाजिक पटल पर बि रखणा छन। रै बात नेता जाति क लोखु कि यनि टिप्पड़ी कनै कि त वाँ पर मि अपड़ु बगत नि खपाण चाणु छौं, ईं प्रजाति पर जथगा कम बगत दिये जावन, उथ्गा समाज कि भलै च।
दास लोग, बद्दी-बादिन आदि हमरा समाज मा सँगीत क, लोकगीतों क वाहक रैनी अर वुं लोखु थैंन एका वास्ता पुरू सम्मान मिलणु चयेणु। यिख बात सोशल मीडिया कि हूणि च त एक और सन्दर्भ उठांण जरुरी च। "यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिनसिनाटी, अमेरिका" क संगीत विधा म एक मनखी छन डॉ० स्टीफन फिऑल जौंकु एक वीडियो भौत सा लोक जु सोशल मीडिआ म छन, फेसबुक/व्हाट्सप्प आदि पर, सब्यों न देखि होलु जैमा वु नेगी जी कु गीत "म्येरा डांडि-कांठ्यों कु मुलुक जैल्यु" गौणा छन। सबि गौरव महसूस करदन कि अग्रेज गढ़वळि गीत गाणु च। पण ये सँगीत थैंन जौंन हमरा समाज म बचै कि रखि वे इ संबोधन से हम बुरु मनणा छाँ? त क्य "बद्दी" गलत शब्द च? य याँ से कम से कम कलाकारों थैंन त गर्व महसूस कन चयेणु? यु सब चर्चा क विषय छन। म्येरू ब्यक्तिगत सोचणु यु च कि अगर हम यु संबोधनों थैं सम्मान से दिखला त यु नै भौणि क कलाकारों कु बद्दी/छटँगि आदि पुरणा कलाकारों क वास्ता सम्मान/श्रद्धांजलि होलि।
एक हैंकि बात सब्यों क सामणि रखण चांदु कि डॉ स्टीफन फिऑल से मै ईमेल से संपर्क मा रान्दु अर वु मनखि अपणु नौ ईमेल क आखिर मा "फ्योंलि दास" लिख्दु। य ह्वै सच्चि श्रद्धांजलि। हम लोखु थैंन अपणा पारम्परिक लोक कलाकारों थैंन सम्मान देणु होलु तबि समाज शिक्षित मने जालु, निथर सोच क्य बदल्ये ?
लेख मा जु बि संदर्भ लियाँ छन वु कै पर व्यक्तिगत नि छन, आस च कि याँ थैंन मात्र संदर्भ रूप मा दिखे जालु।
विजय गौड़
कैलिफ़ोर्निया
(मूल ग्राम: बवाणी, ब्लॉक नैनीडांडा, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड)
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