Tuesday, 13 August 2013

"जैंगुणु" (जुगनू)

यीं कविता कि रचना कश्मीरी हिन्दू पण्डित समुदाय कु अपणा घर कश्मीर बटी मूसलमान आतंकियों (येमा स्थानीय मुस्लिम समाज अर प्रशासन कि बि मूक सहमति छै) द्वारा कर्यां सातूं अर अंतिम देश-निकालु थैं मन मा रखि कि, वुँकि व्यथा पर हुईं च अर यना गैरा संकट क बगत म बि ये समुदाय क मनै भितर ज्वा आस छै वेथैं एक जैंगुणु क रूप म दयखदी य कविता सकारात्मक अंत कि ओर देखद। कविता कु शीर्षक जैंगुणु (जुगुनू) अँधेरा थैं चुनौती देंदु एक छ्वटा सी जीव की जीवटता से प्रेरित च। कुछ प्रेरणा बच्चन जी की कविता जुगुनू से बि लियी च। पाठक कविता थैं कै सन्दर्भों मा समझ सकदा। मेरु प्रयास 'जैंगुणु' से प्रेरणा लेकि कविता का कई अर्थ रंचणा कु च।

ह्वै यनु चक्रचाल* अगास* मा,
लुकि ग्येनि जून* - गैणा*।
सूढ़ - बथों* यनु ऐ धरति मा,
उज्यला* का कखि चिन्ह बि नि दिख्येणा,
पण यनि बकिबात* म बि, उज्यलु कनाकु कु ऐंठ्युं च? 
ईं अंध्येरि रात मा बि, यु दयु जलै कु बैठ्युं च?
             (१)
अगास बटी धै लगै - लगै,
अगास म घुमड़ै - घुमड़ै,
डरोणा, सुणोंणा बादल छन,
कि अब नि होणु उज्यलु भै,
पण यनि निरास मा बि, आसै ज्योत उठै कु ऐंठ्युं च? 
ईं अंध्येरि रात मा बि, यु दयु जलै कु बैठ्युं च?
            (२)
चुकापटो राज - पाटम यख,
भितरौं तलक डौर बैठीं च,
उठै जु मुंड चल्दा छाया,
वून घुन्डों मुंडलि क्वोचिं च,
पण यनु तमसौ वातावरण मा बि, जगदु मुछ्यलु पल्ये कु ऐंठ्युं च?
ईं अंध्येरि रात मा बि, दयु जलै कु बैठ्युं च?  
            (३)
(यि पँक्ति केदारनाथ आपदा क सन्दर्भ म बि समझे सकेंदन, वस्तुतः "कश्मीर आपदा १९ जनवरी, १९९०" क वास्ता  लिखी छन)

रौला - बौलों न, बगाणे ठैरीं च। 
रोणी-कंपणी मनख्यात सैरी च। 
देवि-दिव्तों क थान बि दयेखा,
गदन्यों मा हुईं तैरा-तैरि च,
पण यनि संकटै घड़ी मा बि, अड्ड लगै कु ऐंठ्युं च?
ईं अंध्येरि रात मा बि, दयु जलै कु बैठ्युं च?  

विजय गौड़ 
१३ अगस्त २०१३ 
updated on जनवरी ०४,२०२०। 
कविता संग्रह"रैबार" से

(अगास: मस्जिद की ऊँचाई। चक्रचाल: भूकंप सा।  जून: माँ-बहनें।  गैणा: बच्चे।  सूड़ -बथों: आतंकियों का बीभत्स रूप। उज्यला: आशा, भरोसा। बकिबात: कठिन परिस्तिथि। 

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