Tuesday, 26 June 2012

खयालात कुछ यू भी !!!!

1. 

मिरा य़ार 



किसी की आँखों में अपना प्यार तलाश रहा हूँ मैं,
शायद पढ़ लें कभी वो आँखें मुझे,
यही सूनी आश तलाश रहा हूँ मैं.
सोचता हूँ मिलेगा कभी न कभी वो प्यार मुझे,
दिल की यही अन्भुझी प्यास मिटाने,
अपना यार तलाश रहा हूँ मैं।


2.







"तुम्हे देखकर" 

क्यू बेचैन हो जाता हूँ मैं, तुम्हे देखकर?
क्यू बढ़ जाती हैं मेरी बेकरारियां,  तुम्हे देखकर?
क्यू छलक आते हैं आँखों से अश्क़, तुम्हे देखकर?
क्यू इक अपनापन सा मिलता है, तुम्हे देखकर?
शायद मेरा हर ज़ज्बात तुझ से ही मुक्कम्मल है!!!

No comments:

Post a Comment