दगिड्यो,
आज फेर मुल्कौ आवाहन कनु छौं, इन्टरनेट द्वारा उपलब्ध ये सामाजिक माध्यम द्वारा। हम्थैं नयु राज्य मिलि अब १३ साल ह्वै ग्येनि पण हमरि स्तिथि जख्यातखि च, राज्य बणु छौ पहाडों क वास्ता पण पाडों मा हि कुच नि ह्वै। आज बगत बुनु च कि एक हैंकु आंदोलन चयेणु उत्तराखंड मा, पहाड़ क वास्ता, पाड्यों क वास्ता। दगड़ा दगड़ी अकलबर बणी यन बि दिखण कि कखि फेर यनु नि ह्वै जा कि बीज बूता हम अर कुन्ना भरि जै हौरों का, जन उत्तराखंड राज बणणों बगत ह्वै। ये हि विषय पर कविता लिखि आवाहन कनु छौं सब्यों से, रैबार जरूर पौञ्चलु, यनि आस च, विस्वास च।
साबधान, मेरु मुलुक, साबधान !!!!
अर टक नि छोड़ कबि असमान,
भैऱ्या पछ्यण्या बैऱ्यों से पैलि,
रै भितरै अजाणों से साबधान !!
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।
जब तू अयूँ छौ सड़क्यों मा,
कुच चिलांग बैठ्याँ छा खिड्क्यों मा,
वुख तू लड़णू छौ सड़क्यों मा,
वू मौका द्वपणु छौ खिड्क्यों मा,
फेर नै लड़े लड़ण से पैलि,
जरा यूँ द्वी-चारों से साबधान!
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।
बालु नि रै तू बडू व्है ग्ये अब,
तेरह सालम छड़छुड़ू व्है ग्ये अब,
मनखि पछ्यणणों बगत ऐ ग्ये अब,
हौरों सारा तू भिंडी रै ग्ये अब,
अपड़ू समझि बुलंण से पैलि,
जरा जैचंदों से साबधान!!
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।
देस खुणि सहीद होणो इतिहास रै बुलंद त्येरो,
भविष्य नौन्यालु कु हेरुणों घौर बिटी मुखुंद त्येरो,
तौं उठै कि उन्द लि जैकि काज नि होण हल त्येरो,
यिखि पौढ़ी जब यिखि कमैलो, भाग तबि सुफल त्येरो,
भोलै पुन्गड्यों हलाहल से पैलि,
बीज त बूत ये बर्तमान,
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।
रचना: विजय गौड़
कॉपीराइट @ Vijay Gaur २६/०८/२०१३
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