दगिड्यो,
भिंडि दिन बिटिंन आप सब्यों क बीच ऐ नि सक्युं, कारण कुच भै-बंद जणदा छन अर कुच थैं मि अब बथै देंदु। जुलाई २४ कु हमरा पूज्य पिताजी श्री सुरेशानंद जी गौड़ (सेवानिवृत प्रधानाचार्य एवं प्रथम अन्वैषक(PIONEER), जनता इंटर कॉलेज हल्दूखाल) हम्थैं यखुलि छोडि स्वर्ग चलि ग्येनि, य हानि कबि पुरये साकलि, मै नि पता. मन कथगा दुखि च, ल्येखि नि सकदु। सुचणु छौ कि अब अग्नै कुच नि लिखण, फेर सोचि कि क्य एक शिक्षक जैन सरया ज़िन्दगी समाज निर्माण मा समर्पित करि, वूं थैं यु भलु लागलु, जवाब ऐ "ना". त अपणि एक कविता पूर्ण संसोधन क दगड़ी सुनांणु छौं ज्वा पूज्य पिताजी थैं समर्पित च. यु मन्ख्यात खुणि वुन्कू रैबार, माध्यम म्येरि कलम अर सीख वुंकी। आप सब्यों क सामणी कविता प्रस्तुत च.
भिंडि दिन बिटिंन आप सब्यों क बीच ऐ नि सक्युं, कारण कुच भै-बंद जणदा छन अर कुच थैं मि अब बथै देंदु। जुलाई २४ कु हमरा पूज्य पिताजी श्री सुरेशानंद जी गौड़ (सेवानिवृत प्रधानाचार्य एवं प्रथम अन्वैषक(PIONEER), जनता इंटर कॉलेज हल्दूखाल) हम्थैं यखुलि छोडि स्वर्ग चलि ग्येनि, य हानि कबि पुरये साकलि, मै नि पता. मन कथगा दुखि च, ल्येखि नि सकदु। सुचणु छौ कि अब अग्नै कुच नि लिखण, फेर सोचि कि क्य एक शिक्षक जैन सरया ज़िन्दगी समाज निर्माण मा समर्पित करि, वूं थैं यु भलु लागलु, जवाब ऐ "ना". त अपणि एक कविता पूर्ण संसोधन क दगड़ी सुनांणु छौं ज्वा पूज्य पिताजी थैं समर्पित च. यु मन्ख्यात खुणि वुन्कू रैबार, माध्यम म्येरि कलम अर सीख वुंकी। आप सब्यों क सामणी कविता प्रस्तुत च.
हिटणा कु दियीं खुट्टी,
रै मनखी हिटणु रै!!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट,
तू बुटणू रै!!!
कबि उकाल - कबि उंदार सि बाटू ज़िन्दगी कु,
ये थैं तिर्छोड़ी कनै कि हिकमत करणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
उन्द अटगणे कि लगिं होड़ ये मुलुक अब,
उकल्या बणि बि तू यूँ स्ये अग्नै पौंछुणु रै!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट........
उकल्या बणि बि तू यूँ स्ये अग्नै पौंछुणु रै!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट........
सच थैं अब जरा भिंडि दबाणु स्यु झूठ यिख,
द्वी घड़ीम पलट्येलु यु ढुंगु, बाटु हेरुणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
क्वी धक्यालू अग्नै त क्वी पिछ्नै त्वैई,
अपणा- परया पछ्याणि स्ये मन मा लिखणु रै!!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट........
छंट्येलु अँधेरु, होलु उज्यालु सिंनक्वली,
ढान्डू-कांडों मा तब तलक तू सकणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
ज्योंन मनखि कि वेन दियीं त्वै कना कु कुच,
वेकु बुल्युं कैयालि? अफु स्ये पुछणु रै!!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट........
खैरि-विपदों कि लम्बि लंगात जब दयेखा तब,
लगै कि अड्ड दूर धार पोर स्यों ठेलुणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
ब्वै-बाब रैनि कैका सदानि दगडि यिख,
मि बि छ्वरयों, भोल तु बि छ्वरयेलि, बिन्ग्णु रै!!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट........
कबि त मुंड मलसणों आला पित्र त्येरा ड्यार बी,
मोल-माटन लीपि खान्दम वुन्कू बाँठु बि धरणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
खैरि-विपदों कि लम्बि लंगात जब दयेखा तब,
लगै कि अड्ड दूर धार पोर स्यों ठेलुणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
ब्वै-बाब रैनि कैका सदानि दगडि यिख,
मि बि छ्वरयों, भोल तु बि छ्वरयेलि, बिन्ग्णु रै!!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट........
कबि त मुंड मलसणों आला पित्र त्येरा ड्यार बी,
मोल-माटन लीपि खान्दम वुन्कू बाँठु बि धरणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी.........
रचना: विजय गौड़ (कविता संग्रह "रैबार" से)
22.08.2012 (11.50 PM)
(संसोधन दिनांक ०७/०८/२०१३, पूज्य पिताजी को मरणोंपरांत समर्पित)
Copyright @ Vijay Gaur 07/08/2013
Copyright @ Vijay Gaur 07/08/2013
No comments:
Post a Comment