Saturday, 1 June 2013

बरखा!!!

झुण मुण, झुण मुण बरखा,
रूम-झुम, रुम-झुम बरखा,
याद लेकि औन्दि कैकि,
आज मैमा बरखा .....
झुण-मुण ........

य बरखा ज्वा मै तैं,
यन रिझाणि च, 
जिकुड़ी मा बुझीं आग,
तैं सुल्गाणि च,
कैकि खुद मा द्वी घड़ी कु, 
मै खुदयाणी बरखा ......
झुण-मुण ........

बुन्न क्या च कै से,
मन कि क्य गाणी च,
य बरखा ये मन तैं,
झणी कख-२ लिजाणि च,
आज मै से दये तु बोलि,
छै क्य चाणि बरखा ....... 
झुण-मुण ........

यनि बरखणी छै,
ज्वी-क्वी तरस्येणु च,
पुरणा दिनों कि याद,
मा पौंचणु च,
गात-मन थैं भिजै जांदि,
जब बि आन्दि बरखा,
झुण-मुण ........  

विजय गौड़ 
०१।०६।२०१३

Copyright @ Vijay Gaur  01/06/2013

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