छुप के तेरी तस्वीर से दो बात कर लेता हूँ।
यूँ तो मसगूल बहुत हूँ ज़िंदगी कि जद्दोजहद में अब।
मोहब्बत में जाँ से गुजरते हैं गुजरने वाले,
ज़माने को कोसने से आख़िर होगा क्या हासिल,
मैं यूँ ही दिन में सौ बार मर लेता हूँ।।
यूँ तो मसगूल बहुत हूँ ज़िंदगी कि जद्दोजहद में अब।
पर रस्म के लिए तुझे ज़रूर याद कर लेता हूँ।।
तेरी करीबियों के वो निशाँ मिट ते भी तो नहीं,
कोशिश करने को मैं हज़ार कर लेता हूँ,
मोहब्बत में जाँ से गुजरते हैं गुजरने वाले,
मैं कुछ देर साँस रोके खुद को मज़ार कर लेता हूँ।।
तुम तुममें खुश, मैं मुझ में खुश,
मै अब वक़्त का ऐतबार कर लेता हूँ।
ज़माने को कोसने से आख़िर होगा क्या हासिल,
इसलिये मैं ख़ुद को, गुनहगार कर लेता हूँ।।
विजय गौड़
२४।५।२०१३
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