Friday, 10 May 2013

रैबार!!!

हैन्सि ल्या, 
रव़े-२ कि, बगत नि कटेण हो,
उठि जा, 
स्ये-२ कि, उकाल नि लंगयेंण हो।।

कैका सारा नि रौंण,
नि दिखण कै मुखौंदा,  
हथि-खुटी हिलैल्ये लोला,
स्यीं, ज्वनि का छौंदा।
सोचि ल्या, 
ध्वै-२ कि, आंख्युंन नि खुलेंण हो,
उठि जा, 
स्ये-२ कि, उकाल नि लंगयेंण हो।।

कोसिस कनु रैई,
भाग, अफ़ि धै लगौन्दा,
रोगै दवै खोजा,
जु मरज भगौंण चौंदा 
खाँसी ल्या, 
सै-२ कि, रोग नि ढकेण हो 
हैन्सि ल्या, 
रव़े-२ कि, बगत नि कटेण हो।।
  
मनखि, कर्मों से हि,
छवटु-बडु होंदा, 
अर मनखि वी,
जो मनख्यों काम औंदा,
पूछि ल्या, 
बौगा ह्वै कि, अपड़ू नि बणेण हो,
हैन्सि ल्या, 
रव़े-२ कि, बगत नि कटेण हो।।

अफ़ी अपुकु कमौण म,
सान नि चितौंदा,
कै लचारै, लचारि कू,
मखौल नि उड़ोन्दा,
दये बि दया, 
दान दयेकि सोनू नि खवेण हो,
उठि जा, 
स्ये-२ कि, उकाल नि लंगयेंण हो।।
   
औंण-जौणे कि य रीत,
दुन्या मा चनि रौंदा,
खालि हाथ ऐ जु यिख,
वुख बि खालि जौंदा,
बींगि ल्या, 
गालि दयेकि, नाम नि कमैण हो,
उठि जा, 
स्ये-२ कि, उकाल नि लंगयेंण हो।। 

विजय गौड़ 
१०/०५/२०१३  

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