कनि अजाण माया,
कख मन लगाणु ग्वाया,
कुच नि बिग्येणु,
किलै मन खुदेणु,
ह्व़े त क्य ह्व़े ग्याया?
कनि अजाण माया .........
को होलि वा,
ज्वा अपड़ी सि लगणी च,
लुकि-२ ज्वा,
मै थै हि दयखणी च,
न मिन गिचु खोलि,
न वीं बुनु आया,
कनि अजाण माया .........
वींन बोलि कुच न,
पण मिन त सूणि च,
अब मन मा स्वीणों की,
बार सि औणी च,
मैखुणि आज जून,
दिन मा हि ऐ ग्याया,
कनि अजाण माया .........
टक रौंदी असमान मा,
खुट्यों ठीन्स लगणी च,
मै कु सरी दुन्या,
बौल्या-२ बुलणि च,
सुणे मै नि कुच,
क्य लोग बुना छाया,
कनि अजाण माया .........
विजय गौड़
१४ मई २०१३
No comments:
Post a Comment