शालिनी , ए म्येरि शालिनी,
शालिनी, हाँ म्येरि शालिनी,
लिख्वार त्वे लेख-लेखि कि,
शालिनी, हाँ म्येरि शालिनी,
खिलखिलांदी, रै हैन्सणी,
य म्येरि साम-सबेर,
त्वै से महकणी,
त्वै से महकणी,
शालिनी , म्येरि शालिनी ..........
त्येरि य हैन्सि देखि कि,
बिन बात मि बि हैन्सणु,
सुपन्यलि त्येरि आन्ख्यों न,
बनि बनि का सुपन्या देखणु,
छोड़ी न हैन्सणु ये,
खिलीं रै बुराँस सी,
शालिनी , म्येरि शालिनी .......
त्येरि मुखुड्यो उज्यालु देखि कि,
स्यु जून बि सरमाणु,
पैलि ब्यखुनि ऐ जांदु छौ,
अब राति बि डैर-डैरि आणू,
ये थैं यनि डराणि रै,
जु बौडु ना घाम भी,
शालिनी , म्येरि शालिनी .......
लिख्वार त्वे लेख-लेखि कि,
रसिला गीत च मिसाणु,
गितेर, त्वे देख-देखि कि,
सिख्युं-लिख्युं, गै नि पाणु,
तू रूप कि कुण्डी मा ऐ,
फुल्याँ फूलों कि बार सी,
शालिनी , म्येरि शालिनी .......
विजय गौड़
कविता संग्रह "रैबार" से
०६।०६।२०१३
Copyright @ Vijay Gaur 06/06/2013
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