मगलेश डंगवाल की कैसेट" माया बांद" हिट क्या हवे ग्ये,कि गढ़वाल मा 'बांदो' की उमाल सी ऐग्ये.
चंदा बांद, सनका बांद, चखना बांद, फुर्की बांद और झणी क्या-क्या,
दै निर्भग्यो! गढ़वाल का लिख्वारो मा क्या हैंकु, क्वी "सब्जक्ट" हि नि रै ग्ये?
एक जमानो छौ जब थडिया, चौफला, खुदेड, संजोग, विजोग और सन्देश का गीतों न गढ़वाल गुन्जदु छौ,
आज 'लबरा छोरी' और 'नेगी कि चेली' जनु स्तरहीन संगीत ऐ ग्ये.
कुछ लोग ये थैं 'प्रोग्रेसिव म्यूजिक ऑफ़ गढ़वाल' बुल्दन,
भै-बन्दों!! अब तुम हि बोला! कि क्या यनि 'प्रोग्रेस' हूणी बक्की रै ग्ये?
आखिर कख लिजाणा छन हमरु संगीत थैं यी नया ज़माना का गितेर?
क्या भला गीतों कि जिमेवरी एकमात्र 'नेगी जी' कि रै ग्ये?
तुम भी ता वी हवा, वी पानी और वीं प्राकृतिक सम्पदा कु भोग कना छां,
बोला ता कुछ यनु कि जनमानस बोलू कि जुगराज रै भुला, मजा ऐ ग्ये!!
हाल कुछ यनु चा कि आज कु नौजवान बुन्नु, "मेरे को पाड़ी मत बोलो मै देरादुन वाला हूँ"
बोला प्रवासी उत्तराखंड्यो या कनि बयार ऐ ग्ये?
आज जब सर्या पहाड़ हि रोजगार का वास्ता प्रवासी हवे ग्ये,
त क्या केवल बांजी कूड़ी-पुन्गुड़ी, द्वी चार मजबूर और वुँका गोर बखरा हि "पाड़ी" रै ग्येन??
हम अपणा उत्तराखंड थैं कन्न दिखणा चांदा,
अब वू बगत हम सब्यों का सामणी ऐ ग्ये,
निथर वू दिन दूर नि चा दगिड़ो,जब दुन्या थट्टा लगाली कि,
पहाडयों ना अपणी मीठी पछ्याण, छित्या कि 'सिक्यासौर' मा ख्वै दये, छित्या कि 'सिक्यासौर' मा ख्वै दये......
विजय गौड़
25.06.2012
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Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com
कविता सामयिक है और आपकी सामाजिक सरोकारी गुण को अभिव्यक्ति करती है
सकासौरी मा अपण गौड़ लमडाण वाली बात को आपने भली अभिव्यक्ति दी है
सकासौरी मा अपण गौड़ लमडाण वाली बात को आपने भली अभिव्यक्ति दी है
थोड़ा हटके ---
हाँ आपका मराठी ज्ञान आज गढ़वाली के लिए क्रॉस फर्टीलाइजर का काम करे तो जादा फायदेमंद है
आज गढवाली साहित्य को नई संवेदना, नये विषय , चाहिए जो आप या मुझ सरीखे साहित्यकार दे सकते हैं
अगर मराठी के या अंग्रेजी भाषा आदि ..नव कविताओं को गढवाली हिसाब से रचा जाय तो वह गढवाली साहित्य हेतु अधिक लाभदाई होगा बनिस्पत गढवाली परिवेश पर लिमिटेड होकर लिखा जाय
ये खुणि बोल्दीन ढेब्रा चाल
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